सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अमर अब्दुल रहमान की जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया, जिन्हें प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ISIS से सहानुभूति रखने के आरोप में कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा रहमान को दी गई जमानत को बरकरार रखते हुए कहा कि रिहाई के बाद से उन्होंने किसी भी जमानत शर्त का उल्लंघन नहीं किया है।
अदालत ने कहा कि रहमान को 4 अगस्त 2021 को गिरफ्तार किया गया था और वह पहले ही लगभग तीन साल न्यायिक हिरासत में बिता चुके हैं। ट्रायल अभी जारी है और अभियोजन द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह साबित हो कि उन्होंने जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया है या न्यायिक कार्यवाही में कोई बाधा डाली है।
अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष 160 से अधिक गवाहों की गवाही कराने का प्रस्ताव कर रहा है, जिनमें से अब तक 44 गवाहों की गवाही हो चुकी है। ट्रायल को पूरा होने में अभी समय लगेगा। आरोपी को तीन साल से अधिक समय तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बिताने के बाद जमानत दी गई थी।”
पीठ ने रहमान के ट्रायल कोर्ट में नियमित उपस्थिति और न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग को भी रेखांकित किया। अदालत ने कहा, “हम जमानत रद्द करने का कोई कारण नहीं देखते हैं।”
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि रहमान, जो उम्र में युवा हैं, मुख्य रूप से ISIS से सहानुभूति रखने के आरोपी हैं और उन्होंने संगठन में कोई बड़ा संचालनात्मक (ऑपरेशनल) कार्य नहीं किया है। उन्होंने यह भी बताया कि रहमान ने जांच में सहयोग किया और ट्रायल कोर्ट में नियमित रूप से पेश होते रहे हैं।
हालांकि, NIA ने रहमान द्वारा पासपोर्ट बनवाने और विदेश यात्रा करने की अनुमति मांगने का विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने NIA की इस आपत्ति को स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि ट्रायल के दौरान रहमान बिना पूर्व अनुमति के भारत से बाहर यात्रा नहीं कर सकते।
दिल्ली हाई कोर्ट ने इससे पहले 6 मई, 2024 को यह कहते हुए रहमान को जमानत दी थी कि प्रस्तुत साक्ष्य यह नहीं दर्शाते कि आरोपी ने UAPA की धारा 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता) या धारा 39 (आतंकवादी संगठन को समर्थन देना) के तहत कोई अपराध किया है।
NIA के अनुसार, रहमान कथित रूप से कट्टरपंथी बनाए गए और उन्होंने जाने-पहचाने व अज्ञात ISIS सदस्यों के साथ साजिश रची थी ताकि “हिजरत” (धार्मिक प्रवास) के उद्देश्य से जम्मू-कश्मीर और अन्य ISIS-नियंत्रित क्षेत्रों में जाकर इस्लामिक खिलाफत स्थापित करने के लक्ष्य में संगठन को सहयोग दिया जा सके।