सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) और कई राज्यों से जवाब मांगा है। यह कदम उस याचिका पर उठाया गया जिसमें देशभर के स्कूलों में आयु-उपयुक्त, ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education – CSE) को पाठ्यक्रम का औपचारिक हिस्सा बनाने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ 16 वर्षीय दिल्ली की छात्रा काव्या मुखर्जी साहा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में स्कूल शिक्षा में सीएसई को शामिल करने का स्पष्ट निर्देश दिया था, लेकिन एनसीईआरटी ने हाल ही में आरटीआई के जवाब में स्वीकार किया कि उसके पाठ्यक्रम में इस तरह की सामग्री शामिल करने की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
“यह दर्शाता है कि इस अदालत के आदेश अब तक लागू नहीं हुए,” अधिवक्ता ने कहा और जोर दिया कि यौन शिक्षा केवल औपचारिकता नहीं हो सकती, इसमें लैंगिक संवेदनशीलता और ट्रांसजेंडर-समावेशी दृष्टिकोण भी शामिल होना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि एनसीईआरटी और अधिकांश राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदों (SCERTs) ने अब तक लैंगिक पहचान, लैंगिक विविधता और सेक्स व जेंडर के बीच अंतर जैसे विषयों को संरचित या परीक्षोपयोगी सामग्री के रूप में शामिल नहीं किया है, जबकि ट्रांसजेंडर पर्सन्स (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 में इसकी स्पष्ट रूप से आवश्यकता बताई गई है।
याचिका में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक की पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा का हवाला दिया गया है, जिनमें इन मुद्दों की व्यवस्थित अनदेखी पाई गई, जबकि केरल ने आंशिक रूप से इन्हें शामिल किया है। साथ ही, याचिका में यूनेस्को और डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित इंटरनेशनल टेक्निकल गाइडेंस ऑन सेक्सुअलिटी एजुकेशन (ITGSE) का उल्लेख किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के फैसले में वैश्विक मानक के रूप में स्वीकार किया था।
यह नई याचिका सुप्रीम कोर्ट के दिसंबर 2024 के ऐतिहासिक फैसले पर आधारित है, जिसमें अदालत ने बाल विवाह रोकथाम में यौन शिक्षा की केंद्रीय भूमिका पर जोर दिया था। उस फैसले में स्कूलों को निर्देश दिया गया था कि सीएसई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनेस्को के मानकों के अनुसार तैयार किया जाए और इसमें शामिल हो:
- बाल विवाह के कानूनी पहलू
- लैंगिक समानता और अधिकार
- समयपूर्व विवाह के शारीरिक व मानसिक दुष्परिणाम
- रोकथाम और जागरूकता की रणनीतियाँ
अदालत ने स्कूलों और पंचायतों में जागरूकता पोस्टर प्रदर्शित करने और विशेषकर बाल विवाह-प्रवण क्षेत्रों में छात्राओं के लिए मेंटरशिप कार्यक्रम चलाने का भी आदेश दिया था।