सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रणाली में सुधार कर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों के भीतर आय-आधारित प्राथमिकता लागू करने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति सूर्या कांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर 10 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को चेताया कि इस मामले में “काफी विरोध” का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इसका व्यापक असर हो सकता है।
यह याचिका रामाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद ने अधिवक्ता संदीप सिंह के माध्यम से दायर की है। इसमें कहा गया है कि दशकों से आरक्षण लागू होने के बावजूद, इसका लाभ एससी और एसटी समुदायों के अपेक्षाकृत संपन्न तबके को अधिक मिला है, जबकि सबसे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग अब भी पीछे रह गया है।

“याचिकाकर्ता, जो स्वयं अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से हैं, यह दर्शाना चाहते हैं कि इन समुदायों के भीतर आर्थिक असमानताओं के कारण लाभ का वितरण असंतुलित हो गया है,” याचिका में कहा गया।
याचिका में तर्क दिया गया है कि वर्तमान जाति-आधारित आरक्षण ढांचा, जो मूल रूप से ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों के उत्थान के लिए बनाया गया था, अब इन समुदायों के भीतर ही असमानता को बढ़ावा देने का खतरा पैदा कर रहा है। इसमें कहा गया है कि आय-आधारित प्राथमिकता तंत्र को एससी/एसटी आरक्षण में शामिल करने से संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के सिद्धांत को और मजबूती मिलेगी।
याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि उनका उद्देश्य जाति-आधारित आरक्षण को समाप्त करना नहीं है, बल्कि इसे परिष्कृत करना है ताकि अवसर उन लोगों तक पहुंचें “जिन्हें वास्तव में राज्य के सहयोग की आवश्यकता है।” उनका कहना है कि पिछले 75 वर्षों में आरक्षण का अधिकतर लाभ आरक्षित वर्गों के एक सीमित तबके को मिला है, जिससे समुदाय के भीतर आर्थिक असमानता बढ़ी है और व्यापक उत्थान का लक्ष्य अधूरा रह गया है।
केंद्र का जवाब आने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई करेगा।