सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें सार्वजनिक हस्तियों द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों के खिलाफ उपाय करने की मांग की गई थी। ‘हिंदू सेना समिति’ द्वारा दायर जनहित याचिका में दावा किया गया था कि इस तरह के बयान राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खतरा पहुंचाते हैं और विभाजनकारी विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने नफरत फैलाने वाले भाषण और महज गलत बयानों के बीच अंतर किया।
कोर्ट ने कहा, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं, जो वास्तव में कथित संदर्भों को संदर्भित करता है। नफरत फैलाने वाले भाषण और गलत बयानों के बीच अंतर है… अगर याचिकाकर्ता को कोई शिकायत है, तो वे कानून के अनुसार इसे उठा सकते हैं।”
पीआईएल में कोर्ट से भड़काऊ बयानबाजी को रोकने के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करने और उन व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई लागू करने का अनुरोध किया गया था, जिनके बयान सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरे में डाल सकते हैं। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता कुंवर आदित्य सिंह और स्वतंत्र राय ने इस चिंता को उजागर किया कि राजनीतिक नेताओं की टिप्पणियां अक्सर उकसावे की सीमा तक होती हैं, जिससे संभावित रूप से सार्वजनिक अशांति भड़क सकती है।
याचिका में उद्धृत विशिष्ट उदाहरणों में मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत की टिप्पणियां शामिल हैं। वर्मा ने कथित तौर पर श्रीलंका और बांग्लादेश में हुए विद्रोह जैसे संभावित विद्रोह का संकेत देते हुए बयान दिए थे, जबकि टिकैत की टिप्पणियों को हिंसक किसान विरोध की संभावना का संकेत माना गया था।
याचिका में भड़काऊ भाषण पर कानूनी प्रतिबंधों के सरकार के असंगत प्रवर्तन की आलोचना की गई, जिसमें कहा गया कि नागरिकों और पत्रकारों द्वारा किए गए समान अपराधों पर अक्सर राज्य द्वारा कड़ी कार्रवाई की जाती है, लेकिन राजनीतिक हस्तियों द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों पर बड़े पैमाने पर ध्यान नहीं दिया जाता है।