सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नोएडा निवासी द्वारा आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के कारण उत्पीड़न की शिकायत पर सुनवाई करते हुए कड़ा रुख अपनाया और याचिकाकर्ता से पूछा कि वह इन कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों के बजाय अपने घर में क्यों नहीं खिलाते।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “क्या हर गली और हर सड़क को इन बड़े दिल वालों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए? जानवरों के लिए तो जगह ही जगह है, इंसानों के लिए कोई जगह नहीं बची। आप अपने घर में क्यों नहीं खिलाते? आपको कोई रोक नहीं रहा है।”
यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के मार्च 2025 के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने उत्पीड़न से सुरक्षा और एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स, 2023 के नियम 20 के कार्यान्वयन की मांग की थी। यह नियम रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, अपार्टमेंट ओनर एसोसिएशन या स्थानीय निकायों को अपने परिसर में समुदायिक जानवरों के लिए विशेष भोजन स्थल निर्धारित करने का दायित्व देता है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि ग्रेटर नोएडा में ऐसे भोजन स्थल बनाए जा रहे हैं, लेकिन नोएडा में अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि इन भोजन स्थलों को पैदल रास्तों से दूर बनाए जाने पर विचार किया जाए। इस पर पीठ ने सुझाव की व्यवहारिकता पर सवाल उठाते हुए कहा, “आप सुबह साइकल चलाते हैं? ज़रा चलाकर देखिए क्या होता है।” जब वकील ने कहा कि वह सुबह टहलने जाते हैं और कई कुत्ते दिखते हैं, तो कोर्ट ने जवाब में कहा कि “साइकल चालकों और दोपहिया वाहन सवारों के लिए खतरा ज़्यादा है।”
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को इसी विषय पर लंबित एक अन्य याचिका के साथ जोड़ते हुए तत्काल कोई निर्देश जारी नहीं किया।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत आवारा जानवरों की सुरक्षा की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए यह भी कहा था कि आम नागरिकों की सुरक्षा और सड़क पर उनकी आवाजाही प्रभावित न हो, इस पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि कुत्तों के हमलों से हुई हालिया घटनाओं — जिनमें कुछ मामलों में जान भी गई है — को ध्यान में रखते हुए प्रशासन को मानव सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियां शहरी क्षेत्रों में आवारा जानवरों से जुड़ी बढ़ती कानूनी और सामाजिक चिंताओं को उजागर करती हैं, जो अब जनता और न्यायपालिका दोनों की गंभीर निगरानी में हैं।