सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच शिवसेना मामले पर 11 मई को फैसला सुनाएगी। इस बेंच में शामिल जस्टिस एमआर शाह 15 मई को रिटायर हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने इस मामले पर नौ दिन सुनवाई के बाद 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर सवाल उठाया था कि अगर शिंदे गुट के विधायकों को उद्धव के कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पर एतराज था, तो वह तीन सालों तक सरकार के साथ क्यों रहे। कोर्ट ने शिवसेना विवाद मामले में महाराष्ट्र के राज्यपाल पर भी सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंता जताते हुए कहा था कि राज्यपाल को इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था।
कोर्ट ने कहा था कि नया राजनीतिक नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा था कि किसी पार्टी में नीति संबंधी मतभेद है, तो क्या राज्यपाल विश्वास मत हासिल करने को कह सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा था कि उनको खुद यह पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ। उन्होंने कहा था कि राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 22 फरवरी को शिवसेना के चुनाव चिह्न के मामले में निर्वाचन आयोग के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि उद्धव ठाकरे गुट अस्थायी नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल जारी रख सकता है। कोर्ट ने एकनाथ शिंदे गुट और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि शिंदे गुट अभी ऐसा कुछ नहीं करेगा, जिससे उद्धव समर्थक सांसद और विधायक अयोग्य हो जाएं।
दरअसल, निर्वाचन आयोग ने 17 फरवरी को एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना करार देकर धनुष बाण चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया। आयोग ने पाया था कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है। निर्वाचन आयोग ने कहा था कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी निजी जागीर के समान हो गई। इन तरीकों को निर्वाचन आयोग 1999 में नामंजूर कर चुका था। पार्टी की ऐसी संरचना भरोसा जगाने में नाकाम रहती है।