स्थानीय निकाय चुनावों में देरी की किसी भी कोशिश को सख्ती से ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र के ज़िला परिषद, पंचायत समितियों और अन्य स्थानीय निकायों के परिसीमन अभ्यास को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने साफ कहा कि चुनावी प्रक्रिया को रोकने या धीमा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बाग्ची की पीठ ने कहा,
“हम ऐसी कोई याचिका नहीं सुनने वाले जो चुनाव में देरी करे। ये सभी याचिकाएँ चुनाव टालने की रणनीति लगती हैं। चुनाव 31 जनवरी तक कराने ही होंगे, जैसा कि पहले निर्देश दिया गया था। चुनाव कराने में अब कोई और बाधा नहीं हो सकती।”
SEC की समयसीमा में दखल से कोर्ट का इनकार
पीठ ने कहा कि जब राज्य चुनाव आयोग (SEC) चुनाव की घोषणा कर चुका है और सर्वोच्च न्यायालय खुद स्पष्ट निर्देश दे चुका है, तब अदालत चुनावी कार्यक्रम को “बिगाड़ने या रोकने” के लिए हस्तक्षेप नहीं करेगी।
ये टिप्पणियाँ निखिल के. कोलेकर की याचिका खारिज करते वक्त आईं, जिसमें उन्होंने SEC द्वारा अंतिम परिसीमन प्रस्तावों की मंजूरी का अधिकार संभागीय आयुक्तों को सौंपने को चुनौती दी थी।
दलील: परिसीमन की मंजूरी केवल SEC का अधिकार
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुधांशु चौधरी ने तर्क दिया कि निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन की मंजूरी का अधिकार केवल SEC को है।
उन्होंने कहा कि यह अधिकार राज्य सरकार के अधिकारियों को देना, आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी और स्वतंत्रता का त्याग है।
लेकिन पीठ इस दलील से सहमत नहीं हुई।
SC: मूल आदेश को चुनौती ही नहीं दी गई थी
पीठ ने 30 सितंबर के बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने वे मूल आदेश ही चुनौती नहीं दिए जिनसे SEC और राज्य सरकार ने संभागीय आयुक्तों को यह कार्य सौंपा था।
हाईकोर्ट ने कोल्हापुर, सतारा और सांगली के परिसीमन संबंधी रिकॉर्ड का विस्तृत अध्ययन किया था और उसे कोई अवैधता नहीं मिली थी।
याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इतना जरूर स्पष्ट किया कि अधिकारों के इस तरह के हस्तांतरण का बड़ा संवैधानिक सवाल किसी उपयुक्त मामले में विचार के लिए खुला रहेगा।
पिछले आदेशों की निरंतरता: चुनाव का रास्ता साफ करना
सोमवार का आदेश उसी पीठ के 28 नवंबर वाले निर्देश के तुरंत बाद आया है, जिसमें 280 से अधिक नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के चुनाव मार्ग में अड़चनें दूर की गई थीं।
उस आदेश में अदालत ने चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार करवाने की अनुमति दी थी, लेकिन उन 40 नगर परिषदों और 17 नगर पंचायतों के परिणामों पर रोक लगा दी थी जहाँ SC/ST/OBC का संयुक्त आरक्षण 50% की सीमा से ऊपर जा रहा था।
इसके अलावा, पीठ ने उन 336 पंचायत समिति सीटों और 32 ज़िला परिषद सीटों पर चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी, जहाँ गतिविधि अभी शुरू नहीं हुई थी और जहाँ आरक्षण सीमा 50% से अधिक नहीं है।
OBC आरक्षण और बंथिया आयोग पर सुनवाई 21 जनवरी को
पीठ ने स्वीकार किया कि OBC आरक्षण, विशेषकर बंथिया आयोग की रिपोर्ट को लेकर विवाद अब भी लंबित है।
लेकिन अदालत ने दोहराया कि स्थानीय स्वशासन को “बंधक” नहीं बनाया जा सकता और चुनाव नियमित रूप से होने चाहिए।
OBC आरक्षण और बंथिया आयोग की वैधता से जुड़ी याचिकाएँ 21 जनवरी को तीन-न्यायाधीशीय पीठ के सामने सुनवाई के लिए तय हैं।
2026 की अंतिम समयसीमा बरकरार
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव 2022 से अटके हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में सभी चुनाव 31 जनवरी 2026 तक पूरा करना अनिवार्य किया था।
नवीनतम आदेश दोहराता है कि अब किसी भी नई याचिका को चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

