सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनौली के खिलाफ कथित रूप से सांप्रदायिक वीडियो को लेकर शिकायत दर्ज कराने वाले वजाहत खान को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि 14 जुलाई तक उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए।
न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया। याचिका में खान ने उनके खिलाफ पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने और गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की थी।
खान को 9 जून को कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था और वह वर्तमान में हिरासत में हैं। उनके वकील ने कोर्ट को बताया कि खान के पुराने ट्वीट्स को लेकर उनके खिलाफ कई राज्यों में प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिन पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप है। वकील ने दलील दी कि ये सभी शिकायतें प्रतिशोध स्वरूप दर्ज की गई हैं, क्योंकि खान की शिकायत पर ही पनौली को गिरफ्तार किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए सहमति जताई और केंद्र सरकार तथा संबंधित राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा, “प्रार्थना पर विचार करने के बाद हम इसे स्वीकार करने के इच्छुक हैं,” और निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक खान के खिलाफ न तो दर्ज एफआईआर में और न ही किसी समान शिकायत में कोई दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की, “एक प्रसिद्ध तमिल कहावत है, जो शायद तेलुगु में भी है – आग से हुआ घाव तो भर सकता है, लेकिन जुबान से दिया गया घाव नहीं भरता।” यह टिप्पणी ऑनलाइन अभिव्यक्ति की संवेदनशीलता और उसके दुष्परिणामों की ओर इशारा करती है।
शर्मिष्ठा पनौली, जो कि 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट हैं, को 30 मई को गुरुग्राम से कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने एक वीडियो में बॉलीवुड हस्तियों की आलोचना करते हुए सांप्रदायिक टिप्पणी की थी। 5 जून को कलकत्ता हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी। उनकी गिरफ्तारी खान द्वारा 15 मई को गार्डन रीच थाना, कोलकाता में दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर हुई थी।
वहीं दूसरी ओर, वजाहत खान के खिलाफ भी कोलकाता के गोल्फ ग्रीन थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की कई धाराओं के तहत धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने, शांति भंग की नीयत से उकसाने और सार्वजनिक शरारत जैसे आरोप लगाए गए हैं।
यह मामला दर्शाता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री किस तरह बहु-राज्यीय कानूनी कार्यवाहियों को जन्म दे सकती है, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक संवेदनशीलता तथा डिजिटल माध्यमों पर कानूनी उपचार के संतुलन को बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को करेगा।