सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें उसने अपनी सात वर्षीय बेटी से यौन शोषण के मामले में मिली सजा को निलंबित करने की मांग की थी। अदालत ने कठोर टिप्पणियाँ करते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति को किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, “देखिए उसने बच्चे के साथ क्या किया है। उसे कोई राहत नहीं मिलनी चाहिए। बच्ची ने आपके मुवक्किल के खिलाफ बयान दिया है। वह एक विकृत मानसिकता वाला व्यक्ति है, सज़ा निलंबन का कोई अधिकार नहीं है। ये लोग नशे में थे।”
पीठ ने आगे कहा, “कोई अपनी ही बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकता है? वह बच्ची इतनी छोटी है, फिर भी उसने जिरह का सामना किया। शराब पीकर आदमी जानवर बन जाता है। हमें ऐसा नहीं कहना चाहिए, लेकिन हम सबसे उदार पीठ माने जाते हैं। अगर हम जमानत नहीं दे रहे हैं, तो इसके पीछे कारण हैं।”

डॉक्टर के वकील ने तर्क दिया कि बच्ची का बयान सिखाया गया था और इलाहाबाद हाई कोर्ट में 12 लाख से अधिक मामले लंबित हैं, जिससे अपील की सुनवाई जल्द संभव नहीं है। लेकिन शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायिक लंबितता ऐसी गंभीर घटना में सज़ा निलंबन का आधार नहीं बन सकती।
आखिरकार, डॉक्टर के वकील ने याचिका वापस ले ली और मामला खारिज कर दिया गया।
एफआईआर के अनुसार, पीड़िता की मां ने अपने पति पर बेटी से यौन शोषण का आरोप लगाया था। उन्होंने बताया कि वह वाराणसी में रहती हैं जबकि उनका पति हल्द्वानी में एक नर्सिंग होम चलाता है। 23 मार्च 2018 को डॉक्टर ने अपनी बेटी को हल्द्वानी ले गया और 30 मार्च को पत्नी को फोन कर उसे वापस लेने को कहा। बाद में बच्ची ने अपनी मां से कहा कि उसका पिता “गंदे आदमी” हैं और उन्होंने “गंदी हरकत” की।
ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के बयान और अन्य साक्ष्यों के आधार पर डॉक्टर को दोषी करार दिया था, जिसके बाद यह याचिका दायर की गई थी।