सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ओडिशा के बलांगीर स्थित भीमा भोई मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एक एमबीबीएस छात्र के दाखिले को बिना पूर्व सूचना या सुनवाई के रद्द किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
आंशिक कार्यदिवस में गठित पीठ, जिसमें जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे, ने याचिकाकर्ता से यह पूछने के बाद कि उसने पहले हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया, याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और उसे हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।
जस्टिस बिंदल ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा, “हम सीधे इस प्रकार की रिट याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे।” इसके बाद छात्र के वकील हर्षित अग्रवाल ने याचिका वापस ले ली।

छात्र ने 2024–2029 शैक्षणिक सत्र के लिए एमबीबीएस कोर्स में पुनः प्रवेश की मांग की थी और कहा था कि उसका दाखिला प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए समाप्त कर दिया गया। साथ ही, याचिका में मेडिकल संस्थानों में अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए समान प्रक्रिया और पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु दिशानिर्देश बनाने की मांग भी की गई थी।
अग्रवाल ने एक पूर्व मामले का हवाला भी दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इसी प्रकार की याचिका में नोटिस जारी किया था, जिसमें दाखिले की समाप्ति पर अंतरिम संरक्षण हटाए जाने को चुनौती दी गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि एक संबंधित ट्रांसफर याचिका लंबित है और उसकी सुनवाई 14 जुलाई को निर्धारित है।
छात्र ने अपनी याचिका में कई पक्षों को नामजद किया था, जिनमें भारत सरकार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC), मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (MCC), राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), और भीमा भोई मेडिकल कॉलेज शामिल हैं।
शीर्ष अदालत द्वारा इस चरण पर हस्तक्षेप से इनकार करने के बाद अब याचिकाकर्ता के पास हाईकोर्ट का रुख करने का विकल्प खुला है।