सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह इस महत्वपूर्ण सवाल पर विचार करेगा कि क्या किसी अपराध में दोषी ठहराए गए और मतदान के अधिकार से वंचित नेता को राजनीतिक दल या संगठन का नेतृत्व करने से रोका जा सकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 2017 से लंबित इस जनहित याचिका (PIL) को “रोचक प्रश्न” बताते हुए विस्तृत सुनवाई के लिए 19 नवंबर की तारीख तय की।
यह याचिका अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है, जिसमें दोषसिद्ध व्यक्तियों को उनकी अयोग्यता की अवधि के दौरान राजनीतिक दल बनाने या उनका पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की मांग की गई है।

“सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति को वैधानिक अधिकार से अयोग्य ठहराया गया है, आप उसे स्वतः ही उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकते,” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा। उन्होंने बताया कि यह मामला अनुच्छेद 19 के तहत संगठन बनाने के अधिकार और वैधानिक अयोग्यता के बीच संतुलन से जुड़ा है।
उपाध्याय ने तर्क दिया कि जो व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता, उसे पार्टी के उम्मीदवारों को टिकट बांटने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान कानून के तहत ऐसे व्यक्ति जेल से भी राजनीतिक दल बनाकर उसका संचालन कर सकते हैं। उन्होंने कानून आयोग सहित कई आयोगों की सिफारिशों का हवाला दिया, जिनमें दोषियों को राजनीतिक दल का नेतृत्व करने से रोकने की जरूरत बताई गई है।
पीठ ने माना कि यह सवाल “विचार योग्य” है और “कानूनी धुंधले क्षेत्र” में आता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने एक उदाहरण देते हुए पूछा — “मान लीजिए कल संसद ऐसा कानून बना दे कि 80 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक पद नहीं संभालेगा, तो क्या आप उसे राजनीतिक दल का नेतृत्व करने से भी रोक सकते हैं?”
अदालत ने कहा कि इस मामले में उसकी “कुछ सोच” है, लेकिन अंतिम राय बनाने से पहले विस्तृत सुनवाई जरूरी होगी।