इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब तक कोई आपराधिक इतिहास या सिद्ध अपराध नहीं हो, तब तक केवल किसी आपराधिक मामले के लंबित होने के आधार पर किसी अभ्यर्थी को अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अजित कुमार की एकल पीठ ने महेश कुमार चौहान बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य (रिट याचिका संख्या – 947/2024) में यह निर्णय 3 जुलाई 2025 को सुनाया।
मामला संक्षेप में
याची महेश कुमार चौहान ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की थी। याची के पिता 31 जनवरी 2023 को समूह ‘घ’ के कर्मचारी के रूप में सेवा में थे और उनका निधन सेवा के दौरान हुआ। याची की नियुक्ति इस आधार पर टाल दी गई कि उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित है।
प्रशासन द्वारा दो आदेश पारित किए गए थे:

- दिनांक 19.12.2023 का आदेश: जिसमें कहा गया कि जब तक आपराधिक मामले में याची बरी नहीं हो जाते, तब तक नियुक्ति नहीं दी जाएगी।
- दिनांक 02.01.2024 का आदेश: जिसमें कहा गया कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी चरित्र प्रमाण पत्र पर विचार तभी होगा जब याची उस आपराधिक मामले में बरी हो जाएं।
दावा किया गया कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 24.07.2023 को जारी चरित्र प्रमाण पत्र में यह उल्लेख मात्र किया गया था कि यदि याची दोषसिद्ध होते हैं, तो प्रमाण पत्र की वैधता समाप्त हो जाएगी। लेकिन तब तक के लिए प्रमाण पत्र वैध था।
याची का पक्ष
याची के अधिवक्ता श्री अरुण कुमार ने दलील दी:
- प्राथमिकी में याची की कोई विशिष्ट भूमिका नहीं बताई गई है और मामला पारिवारिक रंजिश से उत्पन्न हुआ है।
- याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
- चरित्र प्रमाण पत्र विधिवत रूप से मान्य है और उसे अब तक निरस्त नहीं किया गया।
- अवतार सिंह बनाम भारत संघ, (2016) 8 SCC 471 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल लंबित आपराधिक मामला नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं बन सकता, विशेषकर जब नियुक्ति अनुकम्पा के आधार पर मांगी जा रही हो।
सरकारी पक्ष की दलील
राज्य की ओर से अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने आदेशों का समर्थन किया, परंतु यह स्वीकार किया कि जिला मजिस्ट्रेट ने चरित्र प्रमाण पत्र जारी करते समय उसे निरर्थक नहीं कहा था।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य शोकग्रस्त परिवार को तुरंत राहत देना होता है। न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा:
“यदि नियुक्ति केवल किसी औपचारिक या दुर्बल आधार पर या नियोक्ता के विवेक पर टाल दी जाए और आपराधिक मामले के अंतिम निर्णय तक प्रतीक्षा की जाए, तो अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि:
“द्वारा जारी चरित्र प्रमाण पत्र दिनांक 24.07.2023 को पूर्ण रूप से वैध था और उसमें केवल यह शर्त जोड़ी गई थी कि यदि याची दोषी पाए जाते हैं, तब वह प्रमाण पत्र अमान्य हो जाएगा।”
“ऐसी स्थिति में याची को अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति दी जा सकती थी, जिसे अंतिम निर्णय के अधीन रखा जा सकता था।”
अवतार सिंह प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने कहा:
“… किसी व्यक्ति को केवल लंबित आपराधिक मामले के आधार पर मनमाने ढंग से नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता, विवेक का प्रयोग वस्तुनिष्ठ और न्यायोचित ढंग से किया जाना चाहिए।”
निर्णय
न्यायालय ने कहा कि केवल लंबित आपराधिक मामला और सशर्त चरित्र प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति टालना उचित नहीं है, विशेषकर जब याची के विरुद्ध कोई अन्य आपराधिक मामला नहीं है। न्यायालय ने कहा:
“सामान्य नियुक्तियों के मामलों में विवेक का कठोर प्रयोग उचित हो सकता है, परंतु अनुकम्पा नियुक्ति के मामलों में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।”
अंततः न्यायालय ने आदेश दिनांक 19.12.2023 एवं 02.01.2024 को रद्द करते हुए संबंधित प्राधिकारी को निर्देश दिया कि वह याची को उपयुक्त पद पर नियुक्ति देने के संबंध में दो महीने के भीतर पुनः निर्णय लें। यह नियुक्ति आपराधिक मामले के अंतिम परिणाम के अधीन की जा सकती है।
मुकदमा शीर्षक: महेश कुमार चौहान बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य
रिट याचिका संख्या: WRIT – A No. 947 of 2024
पीठ: न्यायमूर्ति अजित कुमार
याची के अधिवक्ता: श्री अरुण कुमार
राज्य की ओर से अधिवक्ता: स्थायी अधिवक्ता