सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के ऑर्डर VII रूल 11 के तहत केवल रेस जुडिकेटा (res judicata) की आपत्ति के आधार पर वादपत्र (plaint) को प्रारंभिक स्तर पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह तय करना कि कोई मुकदमा रेस जुडिकेटा के कारण बाधित है या नहीं, इसके लिए पूर्व वाद के कथनों, मुद्दों और निर्णयों की विस्तृत जांच आवश्यक होती है, जो कि ऑर्डर VII रूल 11 के तहत दाखिल प्रारंभिक आपत्ति आवेदन के दायरे से बाहर है। नतीजतन, मुकदमे को पूरी सुनवाई के लिए बहाल कर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता पांडुरंगन ने 2009 में एक संपत्ति पर स्वामित्व की घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा (O.S. No. 60 of 2009) दायर किया था। यह संपत्ति उन्होंने 1998 में श्री हुसैन बाबू से खरीदी थी, जिन्होंने इसे 1991 में श्रीमती जयं अम्मल से खरीदा था।
अपीलकर्ता को बाद में पता चला कि पहले उत्तरदाता टी. जयरामा चेट्टियार ने 1996 में श्रीमती जयं अम्मल और अन्य (जिसमें अपीलकर्ता का विक्रेता श्री बाबू भी शामिल था) के खिलाफ विभाजन का मुकदमा (O.S. No. 298 of 1996) दायर किया था और 29 जुलाई 1997 को एक पक्षीय डिक्री प्राप्त कर ली थी। अपीलकर्ता को इस डिक्री की जानकारी केवल तब मिली जब कोर्ट ने उक्त डिक्री के निष्पादन के लिए संपत्ति का निरीक्षण करने के लिए एक अधिवक्ता-आयुक्त नियुक्त किया।

अपनी याचिका में अपीलकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक पक्षीय डिक्री मिलीभगत और धोखाधड़ी से प्राप्त की गई थी, इसलिए वह उस पर बाध्यकारी नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जब उन्होंने संपत्ति खरीदी, तब उन्हें पूर्व मुकदमेबाजी की कोई जानकारी नहीं थी, और उनके विक्रेता, जो उस समय अबू धाबी में थे, को यह विश्वास था कि अन्य प्रतिवादी मुकदमे का विरोध करेंगे। अपीलकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उत्तरदाता ने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (jurisdiction) प्राप्त करने के लिए अदालत में असंबंधित संपत्ति को शामिल करके कोर्ट के साथ धोखाधड़ी की।
पक्षकारों की दलीलें
प्रथम उत्तरदाता (प्रतिवादी) ने ऑर्डर VII रूल 11 CPC के तहत अंतरिम आवेदन (I.A. No. 12 of 2010) दायर कर अपीलकर्ता की याचिका खारिज करने की मांग की। उनका तर्क था कि स्वामित्व का मुद्दा पहले ही एक पक्षीय डिक्री में तय हो चुका था, जो अंतिम हो चुकी थी, इसलिए मुकदमा रेस जुडिकेटा के सिद्धांत के तहत बाधित था।
अपीलकर्ता ने इस आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि वह पहले के मुकदमे में पक्षकार नहीं था और रेस जुडिकेटा का सिद्धांत उस पर लागू नहीं हो सकता। उन्होंने पहले के आदेश में धोखाधड़ी और मिलीभगत के आरोपों को दोहराया।
कोर्ट का विश्लेषण
जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को अस्वीकार कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी का आवेदन स्वीकार कर याचिका खारिज कर दी थी, और हाईकोर्ट ने सिविल पुनरीक्षण याचिका में इस निर्णय को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपनी याचिका में धोखाधड़ी और मिलीभगत के विशिष्ट आरोप लगाए थे, जिनकी विस्तृत जांच आवश्यक थी। कोर्ट ने यह नोट किया कि “क्या एक पक्षीय डिक्री मिलीभगत से प्राप्त की गई है, या जैसा आरोप लगाया गया है, क्या प्रतिवादी संख्या 1 ने ऐसे कोर्ट में मुकदमा दायर कर धोखाधड़ी की, जिसका कोई क्षेत्राधिकार नहीं था, या क्या अपीलकर्ता भले-भाले खरीदार हैं या नहीं — इन सभी मुद्दों की विस्तृत जांच आवश्यक है।”
कोर्ट ने Srihari Hanumandas Totala v. Hemant Vithal Kamat & Ors., (2021) 9 SCC 99 का हवाला देते हुए कहा:
“चूंकि रेस जुडिकेटा की आपत्ति के निर्णय के लिए ‘पूर्व मुकदमे’ की दलीलों, मुद्दों और निर्णयों पर विचार करना पड़ता है, इसलिए यह ऑर्डर VII रूल 11(d) के दायरे से बाहर होगा, जहां केवल याचिका में किए गए कथनों पर गौर करना होता है।”
कोर्ट ने Keshav Sood v. Kirti Pradeep Sood, Civil Appeal No. 5841 of 2023, और V. Rajeshwari v. T.C. Saravanabava, (2004) 1 SCC 551 का भी संदर्भ दिया, जहां यह स्पष्ट किया गया था कि कारणों की समानता की पहचान ट्रायल का विषय होती है, जिसमें दस्तावेजों की उचित समीक्षा की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की आलोचना की कि उसने धोखाधड़ी के आरोपों को संक्षेप में खारिज कर दिया और याचिका में प्रस्तुत मामले का कोई विश्लेषण नहीं किया।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्या पूर्व एक पक्षीय डिक्री रेस जुडिकेटा के रूप में प्रभावी होगी, यह ऑर्डर VII रूल 11 CPC के तहत तय नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब याचिका में धोखाधड़ी और मिलीभगत के विशिष्ट आरोप हों।
नतीजतन, कोर्ट ने अपील स्वीकार की और मद्रास हाईकोर्ट का 20 मार्च 2019 का निर्णय तथा जिला मुंसिफ सह न्यायिक मजिस्ट्रेट, पोर्टोनोवो का आदेश रद्द कर दिया। मुकदमा (O.S. No. 60 of 2009) को मूल क्रमांक पर बहाल किया गया और इसके शीघ्र निपटान का निर्देश दिया गया, यह ध्यान में रखते हुए कि मामला पुराना है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और सभी मुद्दे, जिसमें रेस जुडिकेटा की आपत्ति भी शामिल है, मुकदमे की अंतिम सुनवाई में तय किए जाएंगे। पक्षकारों को अपने-अपने खर्च वहन करने का निर्देश दिया गया।