पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त कर्मचारी से ग्रेच्युटी की वसूली को किया रद्द, मनमानी वसूली को बताया ‘अमानवीय’

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सेवानिवृत्त वरिष्ठ लेखा अधिकारी (Senior Account Officer) से 3.3 लाख रुपये से अधिक की वसूली के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों से मनमाने ढंग से वसूली करना कल्याणकारी प्रशासन की भावना के विपरीत है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता धर्मवीर सिंह, जो एक वरिष्ठ लेखा अधिकारी के पद पर कार्यरत थे, तीन दशकों से अधिक की सेवा के बाद 31 दिसंबर 2024 को सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद, प्रतिवादी संख्या 3 ने 25 अगस्त 2025 को एक पत्र जारी कर याचिकाकर्ता को ग्रेच्युटी के कथित अतिरिक्त भुगतान के बदले 3,33,132 रुपये जमा करने का निर्देश दिया। इसके बाद 29 अक्टूबर 2025 को एक रिमाइंडर भी भेजा गया।

इन आदेशों से व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वसूली नोटिस को रद्द करने की मांग की। उनका कहना था कि अतिरिक्त भुगतान प्राप्त करने में उनकी ओर से कोई गलत बयानी (misrepresentation) या गलती नहीं थी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील, श्री स्पर्श छिब्बर ने तर्क दिया कि वसूली की प्रक्रिया याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति के कई महीनों बाद शुरू की गई। उन्होंने जोर देकर कहा कि अतिरिक्त भुगतान के लिए याचिकाकर्ता पर धोखाधड़ी या गलत बयानी का कोई आरोप नहीं है। अपने पक्ष में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफिक मसीह (2015), जगदीश प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ बिहार (2024), और थॉमस डेनियल बनाम स्टेट ऑफ केरला (2022) के फैसलों का हवाला दिया।

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दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील श्री आर.एस. पंघल ने इस तथ्य का खंडन नहीं किया कि याचिकाकर्ता की ओर से कोई धोखाधड़ी या गलत बयानी नहीं की गई थी। यह स्वीकार किया गया कि यह मामला उन निर्णयों के दायरे में आता है जिन पर याचिकाकर्ता ने भरोसा जताया है।

कोर्ट का विश्लेषण

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि अधिक भुगतान की वसूली का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले ही तय किया जा चुका है। कोर्ट ने स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफिक मसीह मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लेख किया, जो नियोक्ताओं द्वारा वसूली को कानूनन अस्वीकार्य मानते हैं, विशेष रूप से जब वसूली सेवानिवृत्त कर्मचारियों या एक वर्ष के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों, और क्लास-III व क्लास-IV कर्मचारियों से की जा रही हो।

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कोर्ट ने थॉमस डेनियल बनाम स्टेट ऑफ केरला (2022) का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वसूली के खिलाफ राहत कर्मचारियों के किसी अधिकार के कारण नहीं, बल्कि इक्विटी (साम्य) में दी जाती है, ताकि उन्हें कठिनाई से बचाया जा सके।

जस्टिस बराड़ ने वसूली शुरू करने के तरीके पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा:

“इस संदर्भ में, इस कोर्ट की सुविचारित राय है कि मनमानी या बिना सूचित किए की गई वसूली कल्याणकारी प्रशासन की भावना के विपरीत है और यह मानवीय विचार की कमी को दर्शाती है। कुल मिलाकर, इस तरह की अचानक वसूली का प्रभाव प्रशासनिक त्रुटि से परे है; यह शासन की संवेदनशीलता, निष्पक्षता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।”

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कोर्ट ने आगे यह भी कहा:

“इसलिए, जहां कानूनी उपचार मौजूद हैं, वहां भी प्रशासनिक विवेक की मांग है कि पेंशन से किसी भी वसूली से पहले उचित नोटिस, परामर्श और सेवानिवृत्त कर्मचारी की गरिमा के अनुरूप सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए।”

निर्णय

कानूनी स्थिति और याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी गलत बयानी के अभाव को देखते हुए, हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने रफिक मसीह मामले के तहत 25 अगस्त 2025 के वसूली आदेश और 29 अक्टूबर 2025 के रिमाइंडर को रद्द कर दिया।

केस डिटेल्स

  • केस टाइटल: धर्मवीर सिंह बनाम द रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसाइटीज पंचकूला और अन्य
  • केस नंबर: CWP-37255-2025
  • साइटेशन: 2025:PHHC:174178
  • बेंच: जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़

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