पत्नी की स्किज़ोफ्रेनिया बीमारी छिपाना कानूनी धोखाधड़ी; राजस्थान हाईकोर्ट ने विवाह किया निरस्त

राजस्थान हाईकोर्ट ने 2013 में हुए एक विवाह को निरस्त कर दिया, यह पाते हुए कि पत्नी की गंभीर मानसिक बीमारी ‘स्किज़ोफ्रेनिया’ को विवाह से पहले पति से छुपाया गया था।

न्यायमूर्ति इन्द्रजीत सिंह और न्यायमूर्ति आनंद शर्मा की खंडपीठ ने 31 जुलाई को यह फैसला सुनाते हुए विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(c) के तहत शुरू से ही शून्य घोषित कर दिया। साथ ही पति को पत्नी से जुड़े सभी आपराधिक मामलों और वित्तीय दायित्वों, जिनमें भरण-पोषण और दहेज उत्पीड़न के मामले शामिल हैं, से मुक्त कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि
चित्तौड़गढ़ निवासी पति ने 29 अप्रैल 2013 को कोटा निवासी महिला से विवाह किया था। विवाह के तुरंत बाद, पति ने पत्नी के व्यवहार में असामान्य बदलाव और हाथ कांपने जैसे शारीरिक लक्षण देखे। पति के अधिवक्ता उमाशंकर आचार्य के अनुसार, ससुराल वालों को पत्नी के सामान में एक पर्ची मिली, जिससे पता चला कि विवाह से पहले वह स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज के लिए दवा ले रही थी।

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पति का आरोप था कि इस बीमारी के कारण विवाह का consummation संभव नहीं हो सका और यह तथ्य जानबूझकर छुपाया गया। बाद में दोनों परिवारों के बीच विवाद बढ़ा और पत्नी के माता-पिता उसे मायके ले गए। इसके बाद पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत विवाह निरस्तीकरण की याचिका दायर की।

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परिवार न्यायालय में याचिका खारिज, फिर अपील
कोटा के परिवार न्यायालय ने 28 अगस्त 2019 को पति की याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने दावा किया कि उसे केवल एक पारिवारिक दुर्घटना के कारण अस्थायी अवसाद हुआ था, स्किज़ोफ्रेनिया नहीं। उसने पति और ससुराल पक्ष पर दहेज मांगने और उत्पीड़न के आरोप भी लगाए।

हाईकोर्ट के निष्कर्ष
साक्ष्यों, गवाहों के बयानों और चिकित्सकीय दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद, हाईकोर्ट ने पाया कि विवाह से पूर्व महिला स्किज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थी और उपचाराधीन थी। अदालत ने इसे विवाह का एक “महत्वपूर्ण तथ्य” माना, जिसे छुपाना हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(c) के तहत कानूनी धोखाधड़ी है।

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खंडपीठ ने कहा कि स्किज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक रोग है जो वैवाहिक जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। अदालत ने इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व फैसलों का भी उल्लेख किया।

इन निष्कर्षों के आधार पर, अदालत ने विवाह को शुरू से ही शून्य घोषित कर दिया, जिससे पति पत्नी से संबंधित सभी कानूनी दायित्वों से मुक्त हो गया।

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