पटना हाईकोर्ट: 18 साल की देरी के बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं किया जा सकता; उद्देश्य अचानक आए संकट से उबरना है

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का मूल उद्देश्य किसी कर्मचारी की मृत्यु के कारण परिवार पर आए अचानक वित्तीय संकट को दूर करना है। अदालत ने स्पष्ट किया कि घटना के वर्षों बाद इस तरह की नियुक्ति का दावा नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने जिला अनुकंपा समिति के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को समय-बाधित (Time-barred) मानते हुए खारिज कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता रणधीर कुमार ने रोहतास की जिला अनुकंपा समिति द्वारा 4 दिसंबर, 2020 को जारी किए गए आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। समिति ने उनके पिता, स्वर्गीय बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया था।

याचिकाकर्ता के पिता बिहार पुलिस में सहायक उप-निरीक्षक (Assistant Sub-Inspector) के पद पर कार्यरत थे और 30 अप्रैल, 1990 को उनका निधन हो गया था। पिता की मृत्यु के समय याचिकाकर्ता की आयु मात्र दो वर्ष थी।

याचिकाकर्ता की मां, शिव कुमारी देवी ने 1990 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। हालांकि, चूंकि मृतक कर्मचारी ने दो शादियां की थीं, विभाग ने उन्हें सक्षम न्यायालय से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र (Succession Certificate) प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के अनुसार, उनकी मां ने प्रमाण पत्र प्राप्त किया और उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद का बकाया भुगतान भी मिला।

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बाद में, 30 जून, 2003 को एक अभ्यावेदन में, याचिकाकर्ता की मां ने अधिकारियों से अनुरोध किया कि उनके बेटे (याचिकाकर्ता) की नियुक्ति पर विचार किया जाए, यह उल्लेख करते हुए कि वह उस समय 15 वर्ष का था। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने 2011 में और फिर 2012 में हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया। 2012 में कोर्ट ने अधिकारियों को नियमानुसार विचार करने का निर्देश दिया था। अंततः, 2020 में समिति ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि यह कर्मचारी की मृत्यु के पांच साल से अधिक समय बाद किया गया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता का पक्ष: याचिकाकर्ता के वकील, श्री मृगेंद्र कुमार ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की मां ने समय पर आवेदन किया था। चूंकि पिता की मृत्यु के समय याचिकाकर्ता नाबालिग था, इसलिए मां ने बाद में उसके बालिग होने पर नियुक्ति का अनुरोध किया। वकील ने दलील दी कि मामला लंबे समय तक अधिकारियों के पास लंबित था, इसलिए इसे खारिज करना अनुचित है।

प्रतिवादी (राज्य) का पक्ष: राज्य की ओर से पेश सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मां द्वारा दायर शुरुआती आवेदन को ठीक से आगे नहीं बढ़ाया गया और आवश्यक दस्तावेज समय पर जमा नहीं किए गए। राज्य का तर्क था कि पिता की मृत्यु के समय याचिकाकर्ता नाबालिग था, इसलिए वह नियुक्ति का पात्र नहीं था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता द्वारा अपनी नियुक्ति के लिए दिया गया आवेदन समय सीमा के बहुत बाद का था, जिसे जिला अनुकंपा समिति ने सही खारिज किया है।

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कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

न्यायमूर्ति पार्थ सारथी ने रिकॉर्ड की जांच की और पाया कि मृतक कर्मचारी की मृत्यु 1990 में हुई थी, जब याचिकाकर्ता केवल दो वर्ष का था। कोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति का विशिष्ट अनुरोध 2003 में किया गया था जब वह 15 वर्ष का था, जो उस समय भी नियुक्ति के लिए योग्य आयु नहीं थी।

हाईकोर्ट ने उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य और अन्य (1994) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें अनुकंपा नियुक्तियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत निर्धारित किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को उद्धृत करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा:

“अनुकंपा रोजगार देने का पूरा उद्देश्य परिवार को अचानक आए संकट से उबरने में सक्षम बनाना है। इसका उद्देश्य परिवार के किसी सदस्य को केवल पद देना नहीं है… सरकार या सार्वजनिक प्राधिकरण को मृतक के परिवार की वित्तीय स्थिति की जांच करनी होती है, और केवल तभी जब वह संतुष्ट हो कि रोजगार के प्रावधान के बिना परिवार संकट का सामना नहीं कर पाएगा, पात्र सदस्य को नौकरी की पेशकश की जानी चाहिए।”

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कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अनुकंपा नियुक्ति योग्यता और खुली भर्ती के सामान्य नियम का एक अपवाद है, जिसे केवल परिवार को वित्तीय बदहाली से बचाने के लिए बनाया गया है।

मामले के तथ्यों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:

“जहां तक 30.6.2003 को दायर आवेदन का संबंध है, याचिकाकर्ता की आयु लगभग 15 वर्ष थी और वह नियुक्ति के लिए पात्र नहीं था। जहां तक 5.9.2019 के आवेदन का सवाल है, चूंकि यह मृतक कर्मचारी की मृत्यु के 18 साल से अधिक समय बाद किया गया था, इसलिए आवेदन को सही खारिज किया गया।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने जिला अनुकंपा समिति के निर्णय में कोई त्रुटि नहीं पाई और रिट याचिका को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति सारथी ने निष्कर्ष निकाला, “कोर्ट को तत्काल आवेदन में चुनौती दिए गए आदेश में कोई त्रुटि नहीं मिली और न ही याचिकाकर्ता के मामले में कोई योग्यता (merit) मिली।”

मामले का विवरण:

  • केस का नाम: रणधीर कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य
  • केस नंबर: सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस संख्या 18068/2023
  • कोरम: न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

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