ओडिशा हाईकोर्ट ने सोमवार को निलंबित भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी विष्णुपद सेठी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। सेठी पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने भ्रष्टाचार के एक मामले में एफआईआर दर्ज की है।
न्यायमूर्ति वी. नरसिंह की एकल पीठ ने 3 जुलाई को पारित उस अंतरिम आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें CBI को अगली सुनवाई तक सेठी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा कि इस स्तर पर अग्रिम जमानत देने से जांच प्रक्रिया बाधित होगी।
न्यायालय ने कहा, “यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं, यह अदालत CBI के इस तर्क से सहमत है कि अग्रिम जमानत के संरक्षण में उनकी पूछताछ प्रभावहीन हो जाएगी, खासकर तब जब जांच में पर्याप्त सामग्री पहले ही सामने आ चुकी है।”

अदालत ने अपने आदेश में टिप्पणी की, “अक्सर कहा जाता है कि भ्रष्टाचार की शक्ति एक छाया की तरह होती है, जो सत्ता रखने वालों के साथ चलती है। याचिकाकर्ता निस्संदेह प्रशासनिक सेवा के एक प्रभावशाली अधिकारी हैं। रिकॉर्ड में उपलब्ध तथ्यों को देखते हुए, यह जांच किया जाना आवश्यक है कि क्या भ्रष्टाचार उनकी छाया है — और यह जांच बिना किसी अवरोध या अग्रिम जमानत जैसे असाधारण उपाय के होनी चाहिए।”
CBI के अनुसार, दिसंबर में उसने एक व्यक्ति देबदत्त महापात्रा के पास से 10 लाख रुपये जब्त किए थे। यह राशि ब्रिज एंड रूफ कंपनी के निदेशक चंचल मुखर्जी द्वारा दी गई थी और महापात्रा ने यह रकम कथित तौर पर सेठी के लिए एकत्र की थी।
उक्त कंपनी को राज्य में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों के लिए विद्यालयों के निर्माण का 37 करोड़ रुपये का ठेका मिला था। उस समय विष्णुपद सेठी SC और ST विकास विभाग के सचिव के पद पर थे।
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद CBI को अब सेठी से बिना किसी कानूनी रुकावट के पूछताछ करने और आगे की कार्रवाई करने की अनुमति मिल गई है।