मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के एक मामले में मुकदमे की कार्यवाही को गलत तरीके से निपटाने के लिए ट्रायल कोर्ट के जज और क्लर्क के आचरण की जांच के निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले के ट्रायल कोर्ट द्वारा संचालन में गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया, जिसके कारण यह अभूतपूर्व कदम उठाया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला रणजीत सिंह जोहल द्वारा दायर जमानत याचिका से उपजा है, जो पुलिस स्टेशन निशातपुरा, जिला भोपाल में दर्ज अपराध संख्या 891/2023 में आरोपी है। जोहल को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 406/34 के तहत अपराधों के लिए 6 अक्टूबर, 2023 को गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ आरोपों में वाहन किराए पर लेना और बाद में वित्तीय लाभ के लिए उन्हें गिरवी रखना शामिल है।
मुख्य कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय
1. मामले की कार्यवाही में गड़बड़ी: हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने कई मौकों पर आरोप तय करने के बजाय साक्ष्य दर्ज करने के लिए मामले को गलत तरीके से निर्धारित किया था। न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि दिनांक 24.02.2024, 09.03.2024 और 23.03.2024 के आदेश पत्र क्लर्क द्वारा लिखे गए थे, जिन पर ट्रायल कोर्ट ने बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर कर दिए थे।”
2. जांच का आदेश: न्यायालय ने भोपाल के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को इन आदेश पत्रों के लेखन और हस्ताक्षर से जुड़ी परिस्थितियों की जांच करने का निर्देश दिया। यदि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश की ओर से लापरवाही पाई जाती है, तो प्रशासनिक कार्रवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश को रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी है।
3. विभागीय कार्यवाही: हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि क्लर्क गलत आदेश पत्र लिखने के लिए जिम्मेदार पाया जाता है, तो उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।
4. जमानत आवेदन: प्रक्रियागत अनियमितताओं के बावजूद, न्यायालय ने जोहल के खिलाफ आरोपों की प्रकृति और सह-आरोपी के फरार होने के तथ्य का हवाला देते हुए उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी।
न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण टिप्पणियां
न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
1. ट्रायल कोर्ट के आचरण पर: “ट्रायल कोर्ट के इस आचरण की सराहना नहीं की जा सकती”।
2. हस्तलिखित आदेश पत्रों के संबंध में: “यह स्पष्ट है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जो भी आदेश पत्र लिखे गए थे, वे विधिवत टाइप किए गए थे, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि दिनांक 24.02.2024, 09.03.2024 और 23.03.2024 के आदेश पत्र क्लर्क द्वारा लिखे गए थे, जिन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर कर दिए गए थे”।
3. समन जारी करने पर: “14.06.2024 को, यह उल्लेख किया गया था कि गवाहों को जारी किए गए समन वापस नहीं मिले हैं, लेकिन 31.05.2024 के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि कोई समन जारी ही नहीं किया गया था। इसलिए, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि 14.06.2024 को ट्रायल जज द्वारा की गई टिप्पणी सही नहीं थी”।
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केस विवरण
– केस संख्या: विविध आपराधिक मामला संख्या 29009/2024
– पक्ष: रणजीत सिंह जोहल (आवेदक) बनाम मध्य प्रदेश राज्य (प्रतिवादी)
– न्यायाधीश: माननीय श्री न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया
– वकील: श्री शफीकुल्लाह (आवेदक के लिए), श्री के.एस. बघेल (प्रतिवादियों/राज्य के लिए लोक अभियोजक)