[मोटर दुर्घटना दावा] विदेश में स्वरोजगार करने वाले के ‘भविष्य की संभावनाओं’ का आकलन, विपरीत साक्ष्य न होने पर, प्रणय सेठी मानकों के अनुसार किया जाए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मोटर दुर्घटना मुआवज़े में ‘भविष्य की संभावनाओं’ का लाभ उस व्यक्ति को भी मिलेगा, जो विदेश में स्वरोजगार कर रहा था। अगर इसके उलट कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जाता, तो भारत में लागू प्रणेय सेठी के मानकों के आधार पर ही यह जोड़ा जाएगा।

यह फैसला न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजरिया की पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने दावा करने वालों की अपील आंशिक रूप से मंज़ूर करते हुए मुआवज़ा 42 लाख रुपये से ज़्यादा बढ़ा दिया। इसमें 40% अतिरिक्त राशि ‘भविष्य की संभावनाओं’ के तहत जोड़ी गई, जिसे हाईकोर्ट ने पहले नहीं दिया था।

पृष्ठभूमि

31 अगस्त 2007 को करनाल के निर्मल कुटिया चौक के पास एक स्वराज माजदा ट्रक ने लापरवाही से चलाई गई गाड़ी से टक्कर मार दी। इस हादसे में 31 वर्षीय राजिंदर सिंह मिहनास की मौत हो गई। वे अमेरिकी नागरिक थे और अमेरिका में ‘वेस्ट एंड एक्सप्रेस इंक.’ नाम से एक ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाने के साथ ड्राइवर के रूप में काम करते थे।

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उनकी पत्नी और बच्चों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवज़े का दावा किया। मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने उनकी आय सिर्फ़ 5,000 रुपये प्रतिमाह मानकर 16 का गुणक लगाते हुए 7.8 लाख रुपये का मुआवज़ा तय किया।

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हाईकोर्ट का आदेश

परिवार ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने पाया कि MACT ने मृतक की आय का आकलन गलत किया था और उसके पास मौजूद आयकर रिकॉर्ड, सोशल सिक्योरिटी नंबर और सैलरी सर्टिफिकेट को नज़रअंदाज़ कर दिया था। अमेरिकी न्यूनतम मजदूरी के आधार पर मासिक आय 78,300 रुपये मानकर मुआवज़ा बढ़ाकर 1.17 करोड़ रुपये किया गया। हालांकि, हाईकोर्ट ने ‘भविष्य की संभावनाओं’ का लाभ नहीं दिया।

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

परिवार ने इस बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि हाईकोर्ट ने प्रणेय सेठी के फैसले के विपरीत 40% अतिरिक्त राशि नहीं जोड़ी। बीमा कंपनी ने इसके जवाब में कहा कि मृतक की आय का आकलन ज़्यादा किया गया और कागजात प्रमाणिक नहीं थे।

सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी की आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट का आय निर्धारण साक्ष्यों पर आधारित था और बीमा कंपनी ने इस पर कोई क्रॉस-अपील भी नहीं की थी। कोर्ट ने 16 का गुणक सही माना और साफ़ किया कि विदेश में आय का अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन जब तक कोई ठोस सबूत न हो, भारत में तय मानक ही लागू होंगे।

कोर्ट ने कहा, “यह मान लेना कि किसी व्यक्ति की आय जीवन भर स्थिर रहेगी, मानव स्वभाव के विपरीत है। हर व्यक्ति समय के साथ आगे बढ़ने और बदलाव की कोशिश करता है।”

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अंतिम फैसला

कोर्ट ने मृतक की आय में 40% ‘भविष्य की संभावनाओं’ के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया और पारंपरिक मदों—संपत्ति हानि 15,000 रुपये, अंतिम संस्कार खर्च 15,000 रुपये और चारों आश्रितों के लिए 40,000-40,000 रुपये—में भी संशोधन किया।

कुल मुआवज़ा 1.60 करोड़ रुपये तय किया गया, जो हाईकोर्ट की राशि से 42.95 लाख रुपये ज़्यादा था। बीमा कंपनी को यह अतिरिक्त रकम 6% ब्याज सहित चार हफ्तों में जमा करने का आदेश दिया गया।

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