छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक प्रमुख शराब घोटाले में नामजद अभियुक्त के खिलाफ जांच के दौरान जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट को वैध ठहराते हुए स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 73 — जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 75 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है — के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह गैर-जमानती अपराध में शामिल और गिरफ्तारी से बच रहे व्यक्ति के खिलाफ जांच के दौरान भी गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय डब्ल्यूपी (क्रि.) संख्या 342/2025 में 26 जून 2025 को पारित किया।
पृष्ठभूमि
यह याचिका विजय कुमार भाटिया द्वारा दायर की गई थी, जो भिलाई, छत्तीसगढ़ निवासी हैं। उन्होंने 16 मई 2025 को रायपुर के XI अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा उनके विरुद्ध जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट को चुनौती दी थी। यह वारंट ईओडब्ल्यू/एसीबी रायपुर द्वारा दर्ज एफआईआर संख्या 04/2024 के तहत जारी किया गया था, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 व 12 और आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत अपराध दर्ज किया गया है।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि गिरफ्तारी अवैध है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, विशेषकर तब जब उन्हें पिछले डेढ़ वर्ष में कभी भी जांच में शामिल होने के लिए न तो बुलाया गया और न ही कोई समन जारी किया गया।
पक्षकारों की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि गिरफ्तारी वारंट बिना उचित कारण और बिना कोई समन जारी किए जारी किया गया, जो विधिक रूप से गलत है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का नाम अब तक दायर किसी भी आरोप पत्र में शामिल नहीं था और न ही उन्हें धारा 41ए सीआरपीसी / धारा 35(3) बीएनएसएस के तहत कोई नोटिस दिया गया।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता को दिल्ली एयरपोर्ट पर ब्राज़ील यात्रा के दौरान गिरफ्तार किया गया और उन्हें वारंट न तो दिखाया गया और न ही उसकी जानकारी दी गई, जो सीआरपीसी की धारा 75 / बीएनएसएस की धारा 77 का स्पष्ट उल्लंघन है।
राज्य की ओर से अधिवक्ता विवेक शर्मा और ईडी की ओर से डॉ. सौरभ कुमार पांडे ने गिरफ्तारी को उचित ठहराते हुए कहा कि याचिकाकर्ता एफआईआर में नामजद अभियुक्त हैं (क्रमांक 43 पर) और जांच अभी भी जारी है। अभियुक्त को खोजने के प्रयास के बावजूद वह उपलब्ध नहीं हो सके, इसलिए गिरफ्तारी आवश्यक थी।
न्यायालय का विश्लेषण
हाईकोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि चूंकि आरोप पत्र में याचिकाकर्ता का नाम नहीं है, इसलिए वे अभियुक्त नहीं हैं। न्यायालय ने कहा:
“स्पष्ट रूप से, याचिकाकर्ता एफआईआर में नामजद हैं और उनका नाम अभियुक्तों की सूची में क्रम संख्या 43 पर दर्ज है। जांच अभी भी जारी है।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जारी किया गया वारंट गैर-जमानती नहीं था, बल्कि याचिकाकर्ता की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया था।
State through CBI v. Dawood Ibrahim Kaskar & Ors., (2000) 10 SCC 438 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा:
“धारा 73 CrPC एक सामान्य प्रावधान है। जांच के दौरान भी मजिस्ट्रेट इस प्रावधान के तहत गैर-जमानती अपराध में आरोपित व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी कर सकता है, यदि वह गिरफ्तारी से बच रहा हो।”
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता ने 30 मई 2025 को विदेश यात्रा की योजना बनाई थी, जो इस बात का संकेत है कि वे गिरफ्तारी से बचने की कोशिश कर रहे थे:
“यह दर्शाता है कि याचिकाकर्ता को ज्ञात था कि उनकी गिरफ्तारी हो सकती है, और देश छोड़ने का प्रयास गिरफ्तारी से बचने के उद्देश्य से किया गया।”
निर्णय
न्यायालय ने पाते हुए कि ट्रायल कोर्ट द्वारा वारंट जारी करने के निर्णय में कोई कानूनी त्रुटि नहीं थी, याचिका को खारिज कर दिया। निर्णय में कहा गया:
“ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में पर्याप्त कारण हैं और यह विधि सम्मत है। याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई कोई भी राहत प्रदान नहीं की जा सकती।”
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता यदि चाहे तो नियमित जमानत के लिए पुनः आवेदन कर सकते हैं, क्योंकि उनकी पिछली जमानत याचिका 20 जून 2025 को खारिज हो चुकी है।
मामले का शीर्षक: विजय कुमार भाटिया बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: डब्ल्यूपी (क्रि.) संख्या 342 / 2025