करियर में सेटल होने के लिए शादी के लिए समय मांगना ‘शादी का झूठा वादा’ नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने करियर में स्थापित होने के लिए शादी को कुछ समय के लिए टालने का अनुरोध करता है, तो इसे “धोखाधड़ी” या “शादी का झूठा वादा” नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने शादी के बहाने धोखाधड़ी करने के आरोप में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा को रद्द करते हुए उसे बरी कर दिया।

अब्दुल रियाजुद्दीन बनाम पुलिस इंस्पेक्टर (Crl.A.No.73 of 2018) के मामले में, जस्टिस एम. निर्मल कुमार की एकल पीठ ने अपीलकर्ता की याचिका को स्वीकार कर लिया। इससे पहले, सत्र न्यायाधीश, महिला न्यायालय, चेन्नई ने अपीलकर्ता को बलात्कार (धारा 376 आईपीसी) के आरोपों से तो बरी कर दिया था, लेकिन धोखाधड़ी (धारा 417 आईपीसी) के तहत दोषी ठहराते हुए छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष धोखाधड़ी के तत्वों को साबित करने में विफल रहा है और अपीलकर्ता द्वारा शादी से पहले कमाई और सेटल होने के लिए समय मांगना एक सामान्य अपेक्षा है।

मामले की पृष्ठभूमि

अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता और पीड़िता (PW1) 2011 से 2014 तक तमिलनाडु इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर स्टडीज में सहपाठी थे। उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और उनके बीच शारीरिक संबंध भी बने। आरोप था कि अपीलकर्ता ने शादी का वादा किया था और भरोसा दिलाया था कि उसके परिवार (पिता मुस्लिम और माता हिंदू) को इस अंतर-धार्मिक विवाह से कोई आपत्ति नहीं होगी।

कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद, जब पीड़िता का परिवार शादी के प्रस्ताव के साथ अपीलकर्ता के माता-पिता से मिला, तो उन्होंने शुरुआत में विरोध किया लेकिन बाद में वे शादी के लिए इस शर्त पर राजी हो गए कि अपीलकर्ता के मध्य पूर्व (Middle East) से नौकरी करके लौटने के बाद, यानी “पांच से आठ साल” बाद शादी की जाएगी। पीड़िता के परिवार ने इस पर लिखित आश्वासन मांगा, जिससे विवाद हुआ और इनकार कर दिया गया। इसके बाद, 2014 में धारा 376 (बलात्कार) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई।

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ट्रायल कोर्ट ने 22 जनवरी, 2018 को अपने फैसले में अपीलकर्ता को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया था, लेकिन उसे धारा 417 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया था।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दोनों के बीच संबंध आपसी सहमति से थे और दोनों परिवारों को इसकी जानकारी थी। यह भी कहा गया कि रिश्ते की शुरुआत में कोई “झूठा वादा” नहीं किया गया था। बचाव पक्ष का कहना था कि अपीलकर्ता ने शादी से इनकार नहीं किया था, बल्कि उसने केवल अपने जीवन में सेटल होने के लिए समय मांगा था। अपनी दलील के समर्थन में, उन्होंने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी वादे को झूठा तभी माना जाएगा जब उसे करते समय ही उसे पूरा न करने का इरादा हो।

दूसरी ओर, सरकारी वकील (आपराधिक पक्ष) ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि अपीलकर्ता ने शादी का पक्का आश्वासन देकर पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि पांच साल का इंतजार करने की शर्त केवल समय बर्बाद करने की एक चाल थी और अपीलकर्ता ने “चार साल तक पीड़िता का इस्तेमाल किया” और उसे शादी में कोई वास्तविक दिलचस्पी नहीं थी।

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कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

जस्टिस एम. निर्मल कुमार ने सबूतों की जांच करते हुए पाया कि अपीलकर्ता और पीड़िता चार साल से अधिक समय से लगातार रिश्ते में थे और कॉलेज व सार्वजनिक स्थानों पर साथ घूमते थे। कोर्ट ने नोट किया कि उनके बीच शारीरिक संबंध स्वैच्छिक थे, जिसकी पुष्टि पीड़िता ने डॉक्टर (PW8) के समक्ष भी की थी और यह एक्सीडेंट रजिस्टर (Ex.P4) में दर्ज है।

धारा 417 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि के संबंध में, कोर्ट ने इस आरोप की बारीकी से जांच की कि क्या अपीलकर्ता ने पीड़िता को धोखा दिया था। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:

“अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों ने शादी के लिए मना नहीं किया, उन्होंने जोर देकर कहा कि शादी पांच साल बाद की जा सकती है क्योंकि अपीलकर्ता मध्य पूर्व (Middle East) में रोजगार प्राप्त करना चाहता था और अच्छी कमाई करने के बाद शादी करना चाहता था, जो कि किसी भी माता-पिता की एक सामान्य अपेक्षा है और इसमें कोई गलती नहीं निकाली जा सकती।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता के परिवार द्वारा लिखित आश्वासन की जिद ने संभवतः अपीलकर्ता के परिवार के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई होगी, जिसके कारण उन्होंने ऐसी शर्त मानने से इनकार कर दिया।

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“झूठे वादे” और बाद में शादी में देरी या असमर्थता के बीच अंतर करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा:

“समय मांगना किसी भी तरह से कपटपूर्ण कृत्य नहीं है जिसे झूठा वादा या धोखाधड़ी कहा जा सके।”

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह रिश्ता चार साल से अधिक समय तक चला और “इतनी लंबी अवधि के लिए कोई गलतफहमी नहीं हो सकती।”

फैसला मद्रास हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष धारा 417 आईपीसी के तहत अपराध के लिए आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में विफल रहा है। कोर्ट ने कहा:

“यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि शादी करने से केवल इनकार करना धारा 417 आईपीसी के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि अभियोजन पक्ष द्वारा धारा 90 आईपीसी की आवश्यकताओं को स्थापित नहीं किया जाता।”

तदनुसार, कोर्ट ने आपराधिक अपील को स्वीकार कर लिया और ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया। अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और जमा की गई जुर्माने की राशि वापस करने का आदेश दिया गया।

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