मद्रास हाईकोर्ट ने नौ साल की देरी से दायर अवमानना याचिका को खारिज किया, कहा- समय सीमा से बाहर है

मदुरै बेंच ने 2013 के एक आदेश का पालन न करने को लेकर शैक्षणिक अधिकारियों के विरुद्ध दायर एक अवमानना याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह याचिका Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 20 के तहत समय सीमा से बाहर है।

यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने Contempt Petition (MD) No.1206 of 2025 में पारित किया, जो एक शारीरिक शिक्षा निदेशक (ग्रेड-I) द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता को पहले W.P.(MD) No.13965 of 2011 में 25 जुलाई 2013 को राहत मिली थी।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने 2011 में मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच का रुख किया था, जिसमें उन्होंने दिनांक 09.09.2010 के आदेश को रद्द करने और G.O.Ms.No.324, Education, Science and Technology Department, दिनांक 25.04.1995 के आधार पर वर्ष 2006 से प्रोत्साहन वृद्धि (incentive increments) दिए जाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने 25.07.2013 को याचिका स्वीकार करते हुए उक्त आदेश को रद्द किया और प्रतिवादियों को आठ सप्ताह की अवधि में याचिकाकर्ता को उनकी M.Phil. (Physical Education) डिग्री के आधार पर प्रोत्साहन वृद्धि स्वीकृत कर भुगतान करने का निर्देश दिया था।

अवमानना याचिका में पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादीगण ने अदालत के आदेश का नौ वर्षों से पालन नहीं किया, जिससे जानबूझकर आदेश की अवहेलना हुई। याचिका 7 अप्रैल 2025 को दाखिल की गई थी।

वहीं, प्रतिवादीगण की ओर से एडिशनल गवर्नमेंट प्लीडर ने याचिका का विरोध किया और Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 20 के तहत समय सीमा की बाध्यता का हवाला दिया।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि याचिका अत्यधिक देरी के कारण विचारणीय नहीं है। उन्होंने कहा:

“यह अवमानना याचिका वर्ष 2025 में लगभग 9 वर्षों की देरी से दायर की गई है… अतः यह याचिका समयबद्ध नहीं है और इतनी विलंबित स्थिति में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा केवल अप्रैल 2025 के डाक रसीदें पेश की गईं, परंतु यह दर्शाने के लिए कोई प्रमाण नहीं दिया गया कि 2013 का आदेश प्रतिवादियों को कभी भेजा गया या इस बीच कोई फॉलोअप कार्रवाई की गई। न ही देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण दिया गया, न ही यह बताया गया कि यह देरी याचिकाकर्ता के नियंत्रण से बाहर के कारणों से हुई।

READ ALSO  उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती चिंताओं के बीच तकनीकी हस्तक्षेप पर विचार किया

कानूनी आधार

कोर्ट ने कई सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें प्रमुख हैं:

  • P.K. Ramachandran v. State of Kerala (AIR 1998 SC 2276): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि limitation laws को कठोर रूप से लागू किया जाना चाहिए, भले ही वे कठोर प्रतीत हों।
  • Pallav Sheth v. Custodian ((2001) 7 SCC 549): इस फैसले में कहा गया कि अवमानना की कार्यवाही एक वर्ष के भीतर शुरू की जानी चाहिए।

कोर्ट ने यह दोहराया:

“सभी अवमानना याचिकाएँ Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 20 में निर्धारित समय सीमा के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।”

READ ALSO  कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही रद्द की, एक महीने के भीतर पीड़िता से शादी करने का आदेश दिया

हालाँकि, अदालत अनुच्छेद 215 के तहत असाधारण मामलों में अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकती है, जैसे कि जनहित या गंभीर अन्याय, परंतु न्यायालय ने पाया कि यह मामला उन परिस्थितियों में नहीं आता।

फैसला

कोर्ट ने निर्णय दिया कि याचिका समय सीमा से बाहर है और इसमें अनावश्यक विलंब हुआ है। इसके साथ ही अदालत ने कहा:

“अवमानना अधिकार क्षेत्र का प्रयोग संयमपूर्वक किया जाना चाहिए और यह स्वचालित रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए। अदालत के समक्ष विलंब से और बिना स्पष्टीकरण याचिका दायर की जाए तो उसे खारिज किया जा सकता है।”

अतः याचिका खारिज कर दी गई और किसी भी पक्ष को कोई लागत नहीं दी गई।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles