लखनऊ एमपी/एमएलए कोर्ट ने ‘कठमुल्लापन’ टिप्पणी को लेकर सीएम योगी के खिलाफ मानहानि की शिकायत खारिज की

लखनऊ स्थित विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ‘कठमुल्लापन’ टिप्पणी को लेकर दायर मानहानि की शिकायत खारिज कर दी है। यह टिप्पणी मुख्यमंत्री ने इसी वर्ष फरवरी में विधान परिषद में दिए एक भाषण के दौरान की थी, जिसका वीडियो बाद में उनके आधिकारिक ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर साझा किया गया था।

इस मामले में अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/एसीजेएम आलोक वर्मा ने अपने आदेश में कहा कि यह बयान विधानमंडल के भीतर दिया गया था और भारत के संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत ऐसे बयानों को संरक्षण प्राप्त है। इसलिए, अदालत ऐसे बयानों की न्यायिक जांच नहीं कर सकती।

अदालत ने अपने आदेश में कहा: “चूंकि आवेदक के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा कथित बयान विधानमंडल/विधानसभा में दिया गया था, अतः संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत उन्हें उक्त बयान के लिए प्रतिरक्षा प्राप्त है। इसलिए, उनके द्वारा विधानमंडल में दिए गए बयानों के संबंध में इस न्यायालय के समक्ष कोई कार्यवाही विचारणीय नहीं है।”

यह शिकायत पूर्व आईपीएस अधिकारी और आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री का बयान न केवल मानहानिकारक है, बल्कि जाति, धर्म और भाषा के आधार पर समुदायों में नफरत फैलाने वाला भी है।

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शिकायत में दर्ज बयान इस प्रकार था: “समाजवादियों का चरित्र दोहरा हो चुका है, ये अपने बच्चों को पढ़ाएंगे इंग्लिश स्कूल में और दूसरों के बच्चों के लिए कहेंगे उर्दू पढ़ाओ… उनको मौलवी बनाना चाहते हैं, ‘कठमुल्लापन’ की ओर देश को ले जाना चाहते हैं, ये नहीं चल सकता है…”

ठाकुर ने दावा किया कि यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करती है और इसीलिए यह मानहानि के दायरे में आती है। हालांकि, अदालत ने कई कानूनी आधारों पर उनकी याचिका को खारिज कर दिया।

अदालत ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 (मानहानि) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 222 (मानहानि के लिए अभियोजन) का हवाला देते हुए कहा कि केवल वही व्यक्ति मानहानि की शिकायत कर सकता है जो खुद इससे प्रभावित हुआ हो। ठाकुर ऐसे पक्ष नहीं थे क्योंकि वह व्यक्तिगत रूप से इस बयान से अपमानित नहीं हुए थे।

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इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 222(2) और 222(4) के तहत यदि किसी मंत्री या उच्च पदस्थ लोक अधिकारी के खिलाफ मानहानि की शिकायत की जाती है, तो इसके लिए सरकारी अभियोजक के माध्यम से सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है। इस मामले में ऐसी कोई अनुमति प्राप्त नहीं की गई थी, जिससे शिकायत प्रक्रिया की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण और विधिक रूप से अवैध पाई गई।

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इन सभी आधारों पर अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि शिकायत विचारणीय नहीं है और इसे खारिज कर दिया।

प्रकरण शीर्षक: अमिताभ ठाकुर बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य

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