दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 से हत्या के मामले में जेल में बंद व्यक्ति को दी जमानत, मृतक की पहचान अब भी रहस्य

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में मंजीत कारकेट्टा नामक व्यक्ति को जमानत दे दी है, जो 2018 से एक हत्या के मामले में जेल में बंद था, जबकि अब तक कथित मृतक की पहचान भी नहीं हो सकी है। न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने इस मामले की जांच पर हैरानी जताते हुए कहा कि इसमें कई गंभीर खामियां हैं।

न्यायमूर्ति कथपालिया ने 21 अप्रैल को हुई सुनवाई में कहा, “इस मामले की जांच इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर देती है। आज तक मृतक की पहचान नहीं हो सकी है, और जो ‘आखिरी बार साथ देखे जाने’ की थ्योरी थी, वह भी तब धराशायी हो गई जब यह सामने आया कि वह महिला—सोनी उर्फ छोटी—जिंदा है।”

READ ALSO  पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पुलिस भर्ती के नियमों में वेटिंग लिस्ट नीति को बरकरार रखा

मंजीत को 17 मई, 2018 को तब गिरफ्तार किया गया था जब शव के टुकड़े मिले और उन्हें शुरुआत में सोनी उर्फ छोटी का माना गया। हालांकि, बाद में यह पुष्टि हुई कि सोनी जिंदा है, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि मृतक कोई और है, जिसकी पहचान अब तक नहीं हो पाई है। अदालत ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि पांच चार्जशीट दाखिल किए जाने के बावजूद पुलिस और वरिष्ठ अधिकारियों ने जांच की ठीक से निगरानी नहीं की।

अभियोजन पक्ष ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मंजीत को मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था और कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) से उसके घटनास्थल पर मौजूद होने की पुष्टि होती है। वहीं, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि मोबाइल टावर की लोकेशन डेटा एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि मंजीत हत्या के समय घटनास्थल पर मौजूद था।

न्यायमूर्ति कथपालिया ने कहा, “यह अत्यंत दुखद है कि एक व्यक्ति की इतनी वीभत्स तरीके से जान गई और अब तक उसकी पहचान भी नहीं हो पाई है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे अनिश्चित आधारों पर आरोपी को अनिश्चितकाल तक स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जा सकता।

READ ALSO  राहुल गांधी से जुड़े मानहानि मामले की सुनवाई 11 फरवरी तक स्थगित

यह फैसला न केवल जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाता है, बल्कि इस बात पर भी जोर देता है कि जब तक ठोस सबूत न हों, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles