खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट बताकर पुलिस को धमकाने का आरोप, वकील की FIR रद्द करने से हाईकोर्ट का इनकार

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक वकील द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। वकील पर आरोप है कि उसने ट्रैफिक चेकिंग के दौरान पुलिस को चकमा देने के लिए खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट बताया और सरकारी काम में बाधा डाली।

जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि घटना से जुड़े विवादित तथ्यों का फैसला केवल ट्रायल के दौरान सबूतों के आधार पर ही किया जा सकता है, न कि एफआईआर रद्द करने वाली याचिका (Quashing Petition) में।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला चंडीगढ़ के सेक्टर-49 पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर नंबर 26 (दिनांक 19.05.2024) से संबंधित है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 18 मई 2024 की शाम को एएसआई अजीत सिंह और उनकी टीम सेक्टर 45/46/49/50 के चौराहे पर चेकिंग कर रही थी। उन्होंने एक स्कॉर्पियो कार को देखा जिसकी नंबर प्लेट कपड़े से आंशिक रूप से ढकी हुई थी।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट  ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की पेंशन में असमानता को संबोधित किया, समान समाधान की मांग की

आरोप है कि कार चालक ने इशारे के बावजूद गाड़ी नहीं रोकी और जेब्रा क्रॉसिंग पार कर ली। जब एक कांस्टेबल ने वीडियोग्राफी शुरू की, तो चालक ने अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाने से इनकार कर दिया और खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट ‘प्रकाश’ बताया। एफआईआर में कहा गया है कि जब पुलिस ने पुष्टि के लिए पूछा, तो चालक ने सिर हिलाकर ‘हां’ कहा। गाड़ी की विंडशील्ड पर “जज” का स्टीकर भी लगा हुआ था। इसके बाद चालक पुलिसकर्मी से बदसलूकी करते हुए मौके से फरार हो गया। बाद में जांच में पाया गया कि वह गाड़ी किसी मजिस्ट्रेट की नहीं थी।

याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता, जो पेशे से एक वकील हैं, ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि उन्हें पुलिस द्वारा रंजिश के तहत फंसाया गया है। उनका कहना था कि वह एक उभरते हुए वकील हैं और उन्होंने ट्रैफिक पुलिस के डीएसपी सहित प्रशासन के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराई थीं, जिस कारण पुलिस उनसे बदला ले रही है।

कानूनी रूप से, उनके वकील ने दलील दी कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 186 (लोक सेवक के काम में बाधा डालना) के तहत अदालत सीधे संज्ञान नहीं ले सकती। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 195(1) के तहत संबंधित अधिकारी की लिखित शिकायत अनिवार्य है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मानसिक तनाव (Depression) का हवाला देते हुए IPC की धारा 84 के तहत छूट की मांग की।

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. तथ्यात्मक विवाद: कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का मौके पर मौजूद होना एक स्वीकृत तथ्य है। पुलिस की कहानी सही है या याचिकाकर्ता की, यह बिना गवाही और ट्रायल के तय नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि जांच को प्रारंभिक चरण में रोका नहीं जा सकता।
  2. धारा 195 Cr.P.C. की बाधा: कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को नहीं माना कि धारा 186 IPC के कारण पूरी एफआईआर रद्द होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता पर IPC की धारा 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी) और 170 (लोक सेवक का प्रतिरूपण) के भी आरोप हैं, जो स्वतंत्र अपराध हैं। इसलिए, Cr.P.C. की धारा 195 की बाधा इन अपराधों पर लागू नहीं होती।
  3. मानसिक स्थिति का बचाव: धारा 84 IPC (विकृत चित्त व्यक्ति का कार्य) के तहत बचाव की दलील पर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह दावा नहीं किया है कि अपराध के समय वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था। बाद की मानसिक स्थिति या डिप्रेशन के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।
READ ALSO  नियॉन, म्यूटी कलर एलईडी वाले वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने माना कि मामले में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता है और याचिका को खारिज कर दिया।

केस विवरण

केस टाइटल: प्रकाश सिंह मारवाह बनाम यूटी चंडीगढ़ राज्य और अन्य

केस नंबर: CRM-M No.51611 of 2024 (O&M)

कोरम: जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह 

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles