महाकुंभ में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुरक्षा दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को विचार करने से इनकार कर दिया। प्रयागराज के संगम क्षेत्र में हुई एक दुखद भगदड़ के जवाब में यह जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 अन्य घायल हो गए थे।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष स्थगित कर दिया। यह निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए इस कथन के बाद आया कि इसी तरह की एक याचिका पहले से ही हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” बताते हुए मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता विशाल तिवारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला आगे बढ़ाने की सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि स्थानीय अदालत पहले से ही इस मुद्दे पर विचार कर रही है, और सुझाव दिया कि वहां अधिक तत्काल और विशेष प्रतिक्रिया हो सकती है।
उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि भगदड़ की न्यायिक जांच शुरू कर दी गई है। राज्य सरकार घटना के कारणों को समझने और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठा रही है।
मौनी अमावस्या के शुभ दिन सुबह-सुबह हुई इस घटना ने इस तरह के बड़े पैमाने पर धार्मिक समारोहों में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा को लेकर काफी चिंता पैदा कर दी है।
तिवारी ने आपदा के एक दिन बाद 30 जनवरी को दायर अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 32 का हवाला दिया। उन्होंने अनुच्छेद 21 के अनुसार समानता और जीवन के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश स्थापित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की।