केरल हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक आर. राजेश के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू की; फेसबुक पोस्ट में जजों पर संघ परिवार से संबंध होने का आरोप

केरल हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक और केरल विश्वविद्यालय की सिंडिकेट के सदस्य आर. राजेश के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कंटेम्प्ट) की कार्यवाही शुरू की है। यह कार्यवाही 6 जुलाई 2025 को उनके फेसबुक पोस्ट को लेकर शुरू की गई है, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर वैचारिक पक्षपात और संघ परिवार से जुड़ाव का आरोप लगाया था।

न्यायमूर्ति डी.के. सिंह की एकल पीठ ने माना कि उक्त फेसबुक पोस्ट प्रत्यक्ष रूप से न्यायालय की अवमानना है और इससे न्यायपालिका की गरिमा और न्यायिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को ठेस पहुंची है। न्यायालय ने कहा कि एक सार्वजनिक व्यक्ति द्वारा न्यायालय और न्यायाधीशों के विरुद्ध इस प्रकार के आरोप न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप और न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के समान हैं।

फेसबुक पोस्ट की सामग्री

राजेश द्वारा किए गए पोस्ट में कहा गया:

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हाईकोर्ट में न्याय की देवी बैठी है, भगवा झंडा उठाए कोई महिला नहीं… विश्वविद्यालय से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली पीठों में जानबूझकर कट्टर संघ परिवार समर्थकों की नियुक्ति की जाती है…”

पोस्ट में विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति, पंजीयक के निलंबन और छात्र प्रतिनिधियों के चयन जैसे मामलों में न्यायालय के निर्णयों को पक्षपातपूर्ण बताया गया।

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पृष्ठभूमि

यह मामला उस समय उठा जब विश्वविद्यालय के निलंबित रजिस्ट्रार डॉ. के.एस. अनिल कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका 7 जुलाई को न्यायालय में सूचीबद्ध थी। हालांकि याचिका को इस आधार पर वापस ले लिया गया कि सिंडिकेट ने उन्हें पुनः पद पर बहाल कर दिया था। बावजूद इसके, राजेश द्वारा उसी दिन सोशल मीडिया पर न्यायपालिका पर की गई टिप्पणी को लेकर न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया।

न्यायालय ने कहा:

“उन्होंने न्यायिक निर्णयों की आलोचना नहीं की, बल्कि शिक्षा मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों पर प्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाए हैं, जिससे न्यायालय की गरिमा और न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती है।”

कानूनी प्रावधानों और विश्लेषण

न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 और अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(ग) का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी प्रकार की ऐसी भाषा या आरोप जो न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाते हैं, आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आते हैं।

न्यायालय ने बरदाकंता मिश्रा बनाम उड़ीसा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार और एम.वाई. शरीफ़ बनाम नागपुर हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशगण जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधीशों की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप न केवल व्यक्तिगत रूप से न्यायाधीशों को प्रभावित करते हैं, बल्कि पूरे न्यायपालिका संस्थान की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हमला करते हैं।

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न्यायालय ने यह भी कहा:

“कोई भी व्यक्ति — चाहे वह सार्वजनिक जीवन से जुड़ा हो — न्यायालय और न्यायाधीशों पर ऐसे आरोप नहीं लगा सकता जिससे जनता में न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान कम हो।”

लगाए गए आरोप

न्यायालय ने अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15, संविधान के अनुच्छेद 215, और केरल हाईकोर्ट नियमावली, अध्याय XII के नियम 164(2) के अंतर्गत निम्नलिखित आरोप लगाए:

  1. 6 जुलाई 2025 को अपने फेसबुक पेज पर ऐसा पोस्ट प्रकाशित करना जिसका उद्देश्य न्यायालय की छवि को धूमिल करना और शिक्षा मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों को अपमानित करना था।
  2. फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अशालीन और निराधार आरोप लगाकर न्यायालय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना, जो स्पष्ट रूप से आपराधिक अवमानना के अंतर्गत आता है।
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न्यायालय ने आर. राजेश को निर्देश दिया है कि वे 23 जुलाई 2025 को प्रातः 10:15 बजे व्यक्तिगत रूप से या अपने अधिवक्ता के माध्यम से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर इन आरोपों का उत्तर दें।

न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह इस स्वतः संज्ञान अवमानना मामले को संख्यांकित कर नोटिस जारी करे और आवश्यकतानुसार माननीय मुख्य न्यायाधीश के आदेशानुसार उपयुक्त पीठ के समक्ष प्रस्तुत करे।

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