केरल के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी के कुलपतियों (वीसी) की नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर रखने की मांग की।
राज्यपाल, जो दोनों राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं, ने कहा कि संबंधित विश्वविद्यालय अधिनियमों में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका निर्धारित नहीं की गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से 18 अगस्त के उस आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया, जिसमें मुख्यमंत्री को चयन प्रक्रिया में शामिल किया गया था।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम डॉ. सनत कुमार घोष एवं अन्य मामले का हवाला दिया गया, जहां मंत्री की भूमिका इसलिए स्वीकार की गई थी क्योंकि कलकत्ता विश्वविद्यालय अधिनियम, 1979 में इसका स्पष्ट प्रावधान था। जबकि, राज्यपाल ने कहा कि एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी अधिनियम और केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी अधिनियम में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

याचिका में कहा गया, “मुख्यमंत्री राज्य का कार्यकारी प्रमुख होने के नाते उन अनेक सरकारी महाविद्यालयों से जुड़े हैं, जो सरकार द्वारा संचालित और विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। इसलिए, यूजीसी विनियमों के अनुसार वे कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में किसी भी तरह की भूमिका नहीं निभा सकते। उनका शामिल होना ‘अपने ही मामले का न्यायाधीश बनने’ के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।”
राज्यपाल ने स्पष्ट किया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सुधांशु धूलिया के चयन समिति के अध्यक्ष बने रहने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन्होंने राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामों का विरोध किया। इसके बजाय उन्होंने मांग की कि समिति में यूजीसी अध्यक्ष के एक नामित सदस्य को शामिल किया जाए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
राज्यपाल ने यह भी कहा कि समिति द्वारा चुने गए नामों की पैनल सूची वर्णानुक्रम में कुलाधिपति को सौंपी जानी चाहिए और अंतिम नियुक्ति का अधिकार कुलाधिपति के पास होना चाहिए।
यह विवाद उस पृष्ठभूमि में उठा है जब राज्यपाल ने नवंबर 2024 में दो विश्वविद्यालयों में अस्थायी कुलपति नियुक्त किए थे। उन्होंने सीज़ा थॉमस को केरल डिजिटल यूनिवर्सिटी और के. शिवप्रसाद को एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी का अस्थायी वीसी नियुक्त किया था।
राज्य सरकार ने इन नियुक्तियों को चुनौती दी थी, यह कहते हुए कि ये विश्वविद्यालय अधिनियमों और यूजीसी नियमों के अनुरूप नहीं हैं, जिनमें सरकार द्वारा अनुशंसित नामों की पैनल सूची की आवश्यकता होती है। केरल उच्च न्यायालय ने एकल पीठ और खंडपीठ दोनों स्तरों पर राज्यपाल की नियुक्तियों को अवैध ठहराया।
अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या मुख्यमंत्री को विधायी प्रावधानों के अभाव के बावजूद वीसी चयन प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है। यह मामला केरल में उच्च शिक्षा संस्थानों की नियुक्तियों को लेकर राजभवन और राज्य सरकार के बीच चल रहे टकराव को और गहरा करता है।