इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को दो धार्मिक कथावाचकों, संत सिंह यादव और मुकत सिंह यादव, को धार्मिक आस्थाओं के अपमान और धोखाधड़ी के आरोपों में दर्ज मुकदमे में अग्रिम ज़मानत (anticipatory bail) दे दी है। कोर्ट ने पाया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया साबित नहीं होते।
यह मामला इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र में दर्ज किया गया था, जिसमें कथावाचकों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 (धार्मिक विश्वासों का अपमान करने की नीयत) और धारा 318(4) (धोखाधड़ी) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
आरोप है कि इन दोनों कथावाचकों को कुछ लोगों ने सिर्फ इसलिए बंधक बना लिया, उनका मुंडन कर दिया और उन्हें मूत्र पीने के लिए मजबूर किया क्योंकि वे “ऊँची जाति” से नहीं थे। पीड़ितों की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर में इस उत्पीड़न की शिकायत की गई थी।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को बताया कि, “याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई FIR के प्रतिशोधस्वरूप उनके खिलाफ यह झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है।”
न्यायमूर्ति विवेक वर्मा ने 29 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा, “आरोपों की प्रकृति को देखते हुए इस स्तर पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं होते।” उन्होंने यह भी कहा, “अभियुक्त को अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं है; मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बिना, मैं यह मानता हूं कि याचिकाकर्ता जमानत पर रिहा किए जाने के योग्य हैं।”