कर्नाटक हाई कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण बढ़ाने वाले कानून के तहत नई भर्तियों पर रोक लगाई; चल रही भर्ती प्रक्रियाओं को सशर्त मंजूरी

कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए 2022 के उस कानून के तहत नई भर्ती अधिसूचनाएं जारी करने से रोक दिया है, जिसके तहत अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ाया गया था।

मुख्य न्यायाधीश विवु बाखरू और न्यायमूर्ति सी. एम. पूनाचा की खंडपीठ ने यह अंतरिम आदेश 27 नवंबर को दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पारित किया। ये याचिकाएं रायचूर निवासी महेंद्र कुमार मित्र और बेंगलुरु के महेश द्वारा दायर की गई थीं। अदालत ने कहा कि अगली सुनवाई तक 2022 के कानून के तहत कोई नई भर्ती अधिसूचना जारी नहीं की जाएगी।

READ ALSO  हाईकोर्ट का निर्णय प्राथमिकी दर्ज करने के चरण पर मात्र यह देखना ज़रूरी कि क्या सूचना संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है

2022 के कानून में एससी आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17% और एसटी आरक्षण 3% से बढ़ाकर 7% किया गया था। ओबीसी आरक्षण 32% ही है, जिससे राज्य में कुल आरक्षण 56% हो जाता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि 19 नवंबर 2025 से पहले जिन भर्तियों की अधिसूचना जारी हो चुकी है, वे प्रक्रियाएँ जारी रह सकती हैं, भले ही उनमें बढ़े हुए आरक्षण प्रतिशत लागू किए गए हों।

हालांकि, खंडपीठ ने शर्तें भी लगाई:

  • इन चल रही भर्तियों के तहत किए गए सभी नियुक्ति और पदोन्नति आदेश अस्थायी (provisional) होंगे।
  • आदेशों में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि वे अदालत के अंतिम निर्णय के अधीन हैं।
  • यदि बढ़े हुए आरक्षण को बाद में रद्द किया जाता है, तो चयनित उम्मीदवार किसी प्रकार की equity या अधिकार का दावा नहीं कर पाएंगे।
READ ALSO  जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने मंत्रियों के बंगलों के 'अवैध कब्जे' पर जनहित याचिका पर प्रशासन के जवाब पर जताई नाराजगी

अदालत ने यह भी कहा कि यह अंतरिम अनुमति उन मामलों में लागू नहीं होगी जहां किसी अन्य अदालत या अधिकरण ने पहले से कोई अंतरिम या अंतिम आदेश पारित किया हो।

याचिकाकर्ताओं ने 2022 के कानून को कई आधारों पर चुनौती दी है, जिनमें प्रमुख रूप से:

  • बढ़ा हुआ आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी फैसले में तय 50% की सीमा का उल्लंघन करता है।
  • राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 338(9) और 338A(9) के तहत अनिवार्य परामर्श—राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग—से सलाह नहीं ली।
READ ALSO  तमिलनाडु सरकार ने सीएम स्टालिन की छवि खराब करने के लिए ईपीएस, अन्नामलाई के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया

वहीं सरकार का तर्क था कि चल रही भर्ती प्रक्रियाओं को रोकने से प्रशासनिक कामकाज बाधित होगा और कई विभागों में स्टाफ की भारी कमी हो जाएगी।

मामले की अगली सुनवाई के लिए राज्य सरकार को अपना जवाब दाखिल करना होगा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles