झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अधिवक्ता महेश तिवारी के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की है। यह कदम 16 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राजेश कुमार और अधिवक्ता तिवारी के बीच हुई तीखी बहस का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद उठाया गया।
मुख्य न्यायाधीश तारलोक सिंह चौहान, न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद, न्यायमूर्ति रोंगोन मुखोपाध्याय, न्यायमूर्ति आनंद सेन और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की एक पूर्ण पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के बाद, अदालत ने श्री तिवारी को अवमानना कार्यवाही पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है।
क्या है पूरा मामला?

यह पूरा घटनाक्रम 16 अक्टूबर को न्यायमूर्ति राजेश कुमार की अदालत में सामने आया। अधिवक्ता महेश तिवारी अपने मुवक्किल के बिजली कनेक्शन को फिर से बहाल करने के लिए बहस कर रहे थे, जिसे बकाया बिलों के कारण संबंधित विभाग ने काट दिया था।
सुनवाई के दौरान, श्री तिवारी ने अदालत को बताया कि उनका मुवक्किल कनेक्शन बहाली के लिए 25,000 रुपये जमा करने को तैयार है। हालांकि, न्यायमूर्ति कुमार ने एक न्यायिक मिसाल का हवाला देते हुए कहा कि कुल बकाया राशि का 50 प्रतिशत जमा करना आवश्यक है। अंततः, वकील द्वारा अपने मुवक्किल की ओर से 50,000 रुपये जमा करने पर सहमत होने के बाद मामला सुलझ गया।
कैसे बढ़ा विवाद?
मामला तब गरमा गया जब श्री तिवारी का केस खत्म हो गया। अदालत जैसे ही अगले मामले की सुनवाई के लिए आगे बढ़ी, न्यायमूर्ति कुमार ने कथित तौर पर श्री तिवारी द्वारा बहस करने के तरीके पर कुछ टिप्पणी की। इसके बाद जज ने अदालत में मौजूद झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष को इस मुद्दे का संज्ञान लेने के लिए कहा।
न्यायाधीश की टिप्पणियों के जवाब में, श्री तिवारी बेंच के पास पहुंचे और जोर देकर कहा कि वह “अपने तरीके से बहस करेंगे।” उन्हें न्यायाधीश से यह भी कहते सुना गया, “सीमा पार न करें।”
इस पूरी बहस को रिकॉर्ड कर लिया गया और इसका वीडियो बाद में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर वायरल हो गया, जिसने काफी ध्यान आकर्षित किया। इसी के चलते हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया, जिसके कारण पूर्ण पीठ का गठन हुआ और शुक्रवार सुबह सुनवाई हुई। पीठ ने वकील से औपचारिक जवाब मांगते हुए विशेष रूप से घटना के वायरल होने का उल्लेख किया।