छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को मोटर दुर्घटना मुआवजा मामले में भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया, भले ही बीमाकर्ता ने दावा किया कि चेक बाउंस होने के कारण बीमा पॉलिसी अमान्य हो गई थी। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने दावेदारों को दी गई मुआवजा राशि को ₹2.75 लाख से बढ़ाकर ₹6 लाख कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 12 वर्षीय दीपक कन्नौजे की सड़क दुर्घटना में मौत से जुड़ा है। 21 अप्रैल 2017 को एक टिपर ट्रक (हाइवा) (CG 04 JC 2459) ने राजकुमार किराना दुकान के पास उसकी साइकिल को टक्कर मार दी थी। ट्रक चालक लोकश @ लुकेश सेन द्वारा चलाया जा रहा था और मालिक रामजी साहू था। इलाज के दौरान दीपक की मौत हो गई।
मृतक के माता-पिता, पूरन लाल और चित्ररेखा बाई ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT), बलौदा बाजार में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत मुआवजे के लिए याचिका दायर की थी। ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी के खिलाफ 9% वार्षिक ब्याज के साथ ₹2.75 लाख का मुआवजा दिया था।
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इस राशि से असंतुष्ट होकर, दावेदारों ने मुआवजे में वृद्धि की मांग करते हुए MAC No. 1380/2018 दायर किया। वहीं, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी ने MAC No. 1746/2018 दायर कर इस निर्णय को चुनौती दी और खुद को जिम्मेदारी से मुक्त करने की मांग की, यह दावा करते हुए कि बीमा पॉलिसी प्रीमियम का चेक बाउंस होने के कारण पहले ही रद्द कर दी गई थी।
हाईकोर्ट में प्रमुख कानूनी मुद्दे
- क्या बीमा कंपनी चेक बाउंस होने के आधार पर देयता से मुक्त हो सकती है?
- क्या ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया मुआवजा पर्याप्त था या इसे बढ़ाने की जरूरत थी?
कोर्ट का फैसला और टिप्पणियां
न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की अध्यक्षता में हाईकोर्ट की पीठ ने दोनों अपीलों पर एक साथ फैसला सुनाया।
बीमा पॉलिसी रद्द करने का मामला
बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि ट्रक मालिक रामजी साहू ने 5 अप्रैल 2017 से 4 अप्रैल 2018 तक की बीमा अवधि के लिए चेक द्वारा प्रीमियम का भुगतान किया था, लेकिन यह चेक 11 अप्रैल 2017 को अपर्याप्त राशि के कारण बाउंस हो गया। इसके परिणामस्वरूप, बीमा पॉलिसी रद्द कर दी गई थी और एक नई पॉलिसी 26 अप्रैल 2017 को जारी की गई, जो दुर्घटना के बाद थी।
हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि बैंक ने 11 अप्रैल 2017 को बीमा कंपनी को चेक बाउंस की जानकारी दे दी थी, लेकिन बीमाकर्ता ने वाहन मालिक को इस बारे में समय पर सूचित नहीं किया। बल्कि, 4 मई 2017 को नोटिस भेजा गया, जो दुर्घटना के बाद का समय था।
कोर्ट ने कहा:
“यदि बीमा कंपनी ने समय पर नोटिस जारी किया होता, तो वाहन मालिक बकाया राशि जमा कर सकता था। देर से सूचना देने से मालिक को यह मौका नहीं मिल सका।”
कोर्ट ने आगे पाया कि चेक बाउंस की राशि मात्र ₹988 थी, जो मालिक की धोखाधड़ी की मंशा को साबित नहीं करती। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने बीमा कंपनी को उत्तरदायी ठहराया और MAC No. 1746/2018 को खारिज कर दिया।
मुआवजा बढ़ाने पर कोर्ट की राय
कोर्ट ने मुआवजा राशि की समीक्षा करते हुए पाया कि ट्रिब्यूनल ने किशन गोपाल बनाम लाला एवं अन्य [(2014) 1 SCC 244] मामले के आधार पर ₹30,000 वार्षिक आय और 15 का गुणांक (Multiplier) लेकर मुआवजा तय किया था।
लेकिन, चूंकि किशन गोपाल मामला 1992 की दुर्घटना से संबंधित था, हाईकोर्ट ने महंगाई और मुद्रा मूल्य ह्रास को ध्यान में रखते हुए मुआवजा बढ़ाने की जरूरत बताई। सुप्रीम कोर्ट के कुसमी देवी बनाम मोहम्मद कासिम एवं अन्य [(2023) ACJ 1658] मामले का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा:
“भारतीय मुद्रा का मूल्य वर्षों में काफी गिर चुका है, और वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप मुआवजा बढ़ाया जाना चाहिए।”
इस आधार पर, कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर ₹6 लाख कर दिया और ब्याज दर को 7% प्रतिवर्ष निर्धारित किया।
अंतिम निर्णय
- यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की अपील (MAC No. 1746/2018) को खारिज कर दिया गया, और उसे मुआवजा देने का आदेश दिया गया।
- दावेदारों की अपील (MAC No. 1380/2018) को स्वीकार कर लिया गया, और मुआवजा ₹2.75 लाख से बढ़ाकर ₹6 लाख कर दिया गया।
- बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि वह दो महीने के भीतर बढ़ी हुई राशि को MACT, बलौदा बाजार में जमा करे।
- बढ़ी हुई मुआवजा राशि को तीन वर्षों के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा (Fixed Deposit) में रखा जाएगा, जिससे दावेदारों को भविष्य में लाभ मिल सके।
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि मामूली चेक बाउंस के आधार पर बीमा कंपनी अपनी देयता से बच नहीं सकती और पीड़ित परिवार को न्याय मिलना चाहिए।