IBC | ‘मूनशाइन डिफेंस’ और आधारहीन विवाद का सहारा लेकर इनसॉल्वेंसी से नहीं बच सकता कॉर्पोरेट देनदार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के एक फैसले को खारिज करते हुए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के उस आदेश को बहाल कर दिया है, जिसमें धनलक्ष्मी इलेक्ट्रिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया (Insolvency Proceedings) शुरू करने की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कॉर्पोरेट देनदार (Corporate Debtor) द्वारा उठाया गया ‘पूर्व-विद्यमान विवाद’ (Pre-existing Dispute) का बचाव पूरी तरह से आधारहीन और “कोरा झूठ” (Mere Moonshine) था, क्योंकि उनके खुद के बही-खाते (Ledger) और बाद में किए गए भुगतानों से कर्ज की पुष्टि होती है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC) की धारा 9 के तहत एक ऑपरेशनल क्रेडिटर द्वारा शुरू की गई कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) को केवल एक बनावटी विवाद के आधार पर रोका जा सकता है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि विवाद केवल कागजी थे और तथ्यों से मेल नहीं खाते थे।

मामले की पृष्ठभूमि

धनलक्ष्मी इलेक्ट्रिकल्स प्राइवेट लिमिटेड (कॉर्पोरेट देनदार/CD), जो एक इंजीनियरिंग कंपनी है, का अपीलकर्ता फर्म मेसर्स सरस्वती वायर एंड केबल इंडस्ट्रीज के साथ व्यापारिक संबंध था। फर्म उन्हें पाइप और केबल्स की आपूर्ति करती थी और दोनों के बीच एक रनिंग अकाउंट चलता था।

31 जुलाई, 2021 को फर्म ने अपना लेजर अकाउंट कॉर्पोरेट देनदार को भेजा और पुष्टि मांगी। इसके जवाब में, 4 अगस्त, 2021 को कॉर्पोरेट देनदार के अकाउंट्स मैनेजर ने केवल कुछ पुराने डेबिट नोट्स को लेकर मामूली अंतर बताया। महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉर्पोरेट देनदार ने खुद फर्म का लेजर अकाउंट ईमेल किया, जिसमें 2,49,93,690.80 रुपये का क्लोजिंग डेबिट बैलेंस (बकाया) दिखाया गया था। बाद में कुछ भुगतानों के बाद यह राशि घटकर 1,79,93,690.80 रुपये रह गई।

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25 अगस्त, 2021 को फर्म ने बकाया राशि और ब्याज का दावा करते हुए IBC की धारा 8 के तहत डिमांड नोटिस जारी किया।

दलीलें और कार्यवाही

डिमांड नोटिस के जवाब में, कॉर्पोरेट देनदार के टेक्निकल डायरेक्टर ने 20 नवंबर, 2021 को जवाब भेजा और निम्नलिखित आरोप लगाए:

  1. दो विशिष्ट इनवॉइस (संख्या 203 और 205), जिनका कुल मूल्य 57 लाख रुपये से अधिक था, के तहत कोई माल सप्लाई नहीं किया गया।
  2. सप्लाई किया गया माल घटिया गुणवत्ता का था और लगभग 80 किलोमीटर कम (Short Supply) था।
  3. घटिया माल के कारण कॉर्पोरेट देनदार को भारी वित्तीय नुकसान हुआ और ब्लैकलिस्ट होने का खतरा पैदा हो गया।
  4. उन्होंने फर्म के खिलाफ 67,96,800 रुपये और 50 लाख रुपये के जवाबी दावे (Counter-claims) भी पेश किए।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जब यह जवाब भेजा गया, तब कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ पहले से ही एक अन्य ऑपरेशनल क्रेडिटर द्वारा शुरू की गई CIRP चल रही थी, और जवाब देने वाले टेक्निकल डायरेक्टर निलंबित (Suspended) थे।

बाद में, जब पुराना CIRP समझौता होने के कारण वापस ले लिया गया, तो फर्म ने 10 फरवरी, 2023 को अपनी धारा 9 की याचिका दायर की। NCLT ने इसे स्वीकार कर लिया, यह देखते हुए कि कॉर्पोरेट देनदार के लेजर में कर्ज स्वीकार किया गया था और डिमांड नोटिस के बाद भी 61 लाख रुपये का भुगतान किया गया था।

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हालांकि, NCLAT ने 13 मार्च, 2024 को इस आदेश को यह कहते हुए पलट दिया कि याचिका दायर करने में देरी हुई और 2018-2019 के पत्राचार से विवाद का पता चलता है।

कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों की जांच की और पाया कि NCLAT का तर्क त्रुटिपूर्ण था। पीठ ने नोट किया कि NCLAT को शायद इस बात की जानकारी नहीं थी कि कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ सितंबर 2021 से जून 2023 तक एक अलग CIRP चल रही थी, जिस कारण फर्म पहले अपनी याचिका दायर नहीं कर सकी थी।

1. लेजर में कर्ज की स्वीकृति कोर्ट ने 4 अगस्त, 2021 को कॉर्पोरेट देनदार द्वारा भेजे गए ईमेल को महत्वपूर्ण साक्ष्य माना। इसमें उन्होंने खुद अपना लेजर अकाउंट भेजा था जिसमें 1.79 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया स्वीकार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि पुराने डेबिट नोट्स को लेकर जो छोटे-मोटे मतभेद थे, वे इतने बड़े कर्ज को नकारने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

2. विवाद के बावजूद भुगतान जारी रखना कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि तथाकथित विवाद के दौरान भी कॉर्पोरेट देनदार ने फर्म को भुगतान करना जारी रखा था। कोर्ट ने कहा:

“यह एक स्वीकृत तथ्य है कि IBC की धारा 8 के तहत डिमांड नोटिस जारी होने के बाद भी, कॉर्पोरेट देनदार ने फर्म को भुगतान करना जारी रखा और कुल मिलाकर 61 लाख रुपये का भुगतान किया गया।”

पीठ का तर्क था कि अगर वास्तव में कोई गंभीर विवाद या जवाबी दावा होता, तो कॉर्पोरेट देनदार ये भुगतान कभी नहीं करता।

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3. ‘मूनशाइन डिफेंस’ (कोरा झूठ) माल की सप्लाई न होने और घटिया गुणवत्ता के आरोपों पर कोर्ट ने पाया कि फर्म ने डिलीवरी चालान और ई-वे बिल पेश किए थे, जो सप्लाई की पुष्टि करते थे। वहीं, कॉर्पोरेट देनदार के दावों में विरोधाभास था—उन्होंने बिना किसी स्पष्टीकरण के खराब माल की मात्रा को 20,000 मीटर से बढ़ाकर 80 किलोमीटर बता दिया था।

मोबिलॉक्स इनोवेशन्स (2018) के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि न्यायनिर्णायक प्राधिकरण (Adjudicating Authority) को “गेहूं को भूसे से अलग करना” होगा और बनावटी बचाव को खारिज करना होगा।

“इस कानूनी मानक को वर्तमान मामले पर लागू करते हुए, हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि कॉर्पोरेट देनदार द्वारा पेश किया गया पूर्व-विद्यमान विवाद का बचाव महज ‘मूनशाइन’ (कोरा झूठ) था और इसका कोई विश्वसनीय आधार नहीं था।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि NCLAT ने कॉर्पोरेट देनदार के लेजर अकाउंट और डिमांड नोटिस के बाद किए गए भुगतानों को उचित महत्व नहीं दिया।

अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए NCLAT के 13 मार्च, 2024 के फैसले को रद्द कर दिया और NCLT के 6 दिसंबर, 2023 के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें इनसॉल्वेंसी याचिका को स्वीकार किया गया था।

केस डिटेल:

  • केस टाइटल: मेसर्स सरस्वती वायर एंड केबल इंडस्ट्रीज बनाम मोहम्मद मोइनुद्दीन खान और अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 12261/2024
  • कोरम: जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे

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