सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन शामिल थे, ने यह स्पष्ट किया कि यदि पति का कोई निश्चित रोजगार नहीं दर्शाया गया हो, तो यह मान लेना अनुचित होगा कि वह मृतक पत्नी की आय पर आंशिक रूप से भी आश्रित नहीं था। इसी आधार पर न्यायालय ने व्यक्तिगत खर्च की कटौती को 1/3 से घटाकर 1/4 कर दिया और मुआवजा पुनः निर्धारित किया। साथ ही, न्यायालय ने यह भी दोहराया कि “संताप” केवल पति या पत्नी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे बच्चों और माता-पिता को भी दिया जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता—श्री मलक्कप्पा और उनके दो बच्चे—ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष 22 फरवरी 2015 को एक सड़क दुर्घटना में प्रथम अपीलकर्ता की पत्नी की मृत्यु को लेकर मुआवजा याचिका दायर की थी। मृतका एक दुपहिया वाहन की पिछली सीट पर सवार थीं और दुर्घटना के दो दिन बाद 24 फरवरी 2015 को उनकी मृत्यु हो गई।
अधिकरण ने मृतका की मासिक आय ₹15,000 के दावे के विरुद्ध ₹7,000 मानी और 1/3 व्यक्तिगत खर्च घटाते हुए ₹18,81,966 का कुल मुआवजा प्रदान किया। अधिकरण ने यह भी माना कि पति मृतका पर निर्भर नहीं था क्योंकि वह 40 वर्षीय सक्षम व्यक्ति था।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर अधिकरण के निर्णय को चुनौती दी। दुर्घटना के कारण एवं पति की निर्भरता पर आपत्ति जताई गई। हालांकि हाईकोर्ट ने वाहन चालक की लापरवाही को स्वीकार किया और मृतका की मासिक आय ₹8,000 तक बढ़ा दी, जबकि अपीलकर्ताओं द्वारा कोई अपील दाखिल नहीं की गई थी। साथ ही, अधिकरण द्वारा दिए गए 50% भविष्य संभावनाओं की वृद्धि को हाईकोर्ट ने हटा दिया।
सुप्रीम कोर्ट की विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दुर्घटना के कारण संबंधी निष्कर्ष से असहमति नहीं जताई, लेकिन पति की निर्भरता को लेकर अलग दृष्टिकोण अपनाया। न्यायालय ने कहा:
“चूंकि पति की कोई निश्चित नौकरी नहीं दर्शाई गई थी, इसलिए यह मानना उचित नहीं है कि वह मृतका की आय पर आंशिक रूप से भी आश्रित नहीं था।”
इसलिए, पीठ ने परिवार को चार सदस्यों का माना और व्यक्तिगत खर्च की कटौती को 1/3 से घटाकर 1/4 कर दिया।
भविष्य की संभावनाओं के विषय में न्यायालय ने National Insurance Co. Ltd. v. Pranay Sethi, (2017) 16 SCC 680 का हवाला देते हुए 40% वृद्धि को उचित ठहराया। मृतका की आयु 35 वर्ष थी, इसलिए उन्हें 40% की वृद्धि का हकदार माना गया। इसके अतिरिक्त, New India Assurance Co. Ltd. v. Somwati, (2020) 9 SCC 644 मामले का उल्लेख करते हुए यह दोहराया गया कि:
“संताप (loss of consortium) केवल पत्नी या पति तक सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों और माता-पिता को भी दिया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट द्वारा संशोधित मुआवजा
मुआवजा शीर्ष | राशि (₹) |
निर्भरता का नुकसान (₹8000×12×1.4×16×¾) | ₹16,12,800 |
संताप (पति और बच्चों को ₹40,000 प्रति व्यक्ति) | ₹1,20,000 |
चिकित्सकीय खर्च | ₹21,966 |
परिवहन और अंतिम संस्कार खर्च | ₹15,000 |
संपत्ति हानि | ₹15,000 |
कुल | ₹17,84,766 |
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “स्नेह व प्रेम की हानि” के लिए कोई अलग राशि नहीं दी जाएगी क्योंकि संताप पहले ही प्रदान किया जा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा अधिकरण के आदेश में संशोधन करते हुए “न्यायसंगत प्रतिकर (just compensation)” के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त कटौतियों, भविष्य की संभावनाओं और विभिन्न मदों में राशि निर्धारित की। यद्यपि अपीलकर्ताओं ने अधिकरण के आदेश को चुनौती नहीं दी थी, फिर भी न्यायालय ने अनुच्छेद 136 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए मुआवजा गणना को सुधारात्मक रूप में पुनः निर्धारित किया।
अपील उपर्युक्त संशोधनों के साथ निस्तारित की गई।
मामला: श्री मलक्कप्पा व अन्य बनाम इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य
अपील संख्या: सिविल अपील @ विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) संख्या 27391/2018
