पत्नी की कमाई पति को बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करती; एमबीए पिता ‘मामूली आय’ की आड़ नहीं ले सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक पिता अपनी वास्तविक आय छिपाकर या पत्नी के नौकरीपेशा होने की दलील देकर अपने नाबालिग बच्चों के प्रति वित्तीय जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण की राशि में संशोधन करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि एक कामकाजी मां प्रोफेशनल जिम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों की देखभाल का “दोहरा बोझ” (Dual Burden) उठाती है, जिसे पैसों में नहीं तौला जा सकता।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें पति ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे अपने तीन नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए 30,000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की राशि को घटाकर 25,000 रुपये प्रति माह कर दिया, लेकिन पति की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया कि वह केवल 9,000 रुपये महीना कमाता है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता, जो एमबीए की डिग्री रखता है, जानबूझकर अपनी आय कम बता रहा है ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों से भाग सके।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता पति और प्रतिवादी पत्नी का विवाह 26 जनवरी 2014 को हुआ था। इस दंपत्ति के तीन बच्चे (दो बेटियां और एक बेटा) हैं। दहेज की मांग और आर्थिक शोषण के आरोपों के बाद पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (PWDV Act) के तहत याचिका दायर की थी।

23 दिसंबर 2023 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (महिला कोर्ट) ने पति को निर्देश दिया कि वह 30,000 रुपये (प्रत्येक बच्चे के लिए 10,000 रुपये) का अंतरिम भरण-पोषण दे। ट्रायल कोर्ट ने नोट किया था कि हालांकि पति अपनी मां की फार्मेसी में काम करने और 9,000 रुपये वेतन पाने का दावा कर रहा है, लेकिन उसके बैंक स्टेटमेंट और क्रेडिट कार्ड का उपयोग कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।

इस आदेश के खिलाफ पति ने सेशन कोर्ट में अपील की, जिसे 30 मार्च 2024 को खारिज कर दिया गया। सेशन कोर्ट ने पति के दावों को विरोधाभासी माना। इसके बाद पति ने राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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पक्षों की दलीलें

पति का तर्क: पति के वकील ने दलील दी कि भरण-पोषण की राशि बहुत अधिक है क्योंकि पति एक होम्योपैथिक फार्मासिस्ट के रूप में केवल 9,000 रुपये प्रति माह कमाता है। यह भी कहा गया कि पत्नी एक यूनिवर्सिटी में काम करती है और लगभग 34,500 रुपये महीना कमाती है, जो पति की आय से काफी अधिक है। पति ने यह भी दावा किया कि उसके माता-पिता ने उसे अपनी संपत्ति से बेदखल (debar) कर दिया है और वह अपने चाचा के साथ पेइंग गेस्ट के रूप में रह रहा है।

पत्नी का तर्क: दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि उसने अपने लिए कोई भरण-पोषण नहीं मांगा है, बल्कि केवल अपनी कस्टडी में रह रहे तीन नाबालिग बच्चों के लिए मांग की है। यह बताया गया कि पति उच्च शिक्षित है (एमबीए और फार्मेसी में डिप्लोमा) और कोर्ट को गुमराह कर रहा है। कथित बेदखली के बावजूद, वह अपनी मां की फार्मेसी में काम करना जारी रखे हुए है और उसी संपत्ति में रहता है।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

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जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति और बाल भरण-पोषण के कानूनी सिद्धांतों का बारीकी से विश्लेषण किया।

  • आय छिपाना (Concealment of Income): कोर्ट ने पति के 9,000 रुपये महीना कमाने के दावे को कानूनी रूप से अस्वीकार्य पाया। पीठ ने नोट किया कि पिछले वर्षों (AY 2020-21 और 2022-23) के इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) 4.5 लाख से 5 लाख रुपये के बीच की वार्षिक आय दर्शाते हैं।
    कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड पर मौजूद बैंक स्टेटमेंट यह साबित करते हैं कि 9,000 रुपये प्रति माह की आय का दावा झूठा है… यह समझ से परे है कि इतनी कम आय वाला व्यक्ति क्रेडिट कार्ड का उपयोग कैसे कर सकता है।”
    कोर्ट ने माता-पिता द्वारा बेदखल किए जाने के दावे को भी खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि वह अभी भी अपनी मां की फार्मेसी में काम करता है और पारिवारिक संपत्ति में रहता है।
  • साझा जिम्मेदारी और दोहरा बोझ (Dual Burden): पत्नी की आय के तर्क पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हालांकि माता-पिता दोनों की बच्चों के भरण-पोषण की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है, लेकिन पत्नी की नौकरी पिता को मुक्त नहीं करती। कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं पर पड़ने वाले दोहरे बोझ को रेखांकित किया।
    “यहाँ पत्नी का आचरण, जो एक कामकाजी महिला है, यह दर्शाता है कि वह दोहरे बोझ को उठाने के लिए मजबूर है, यानी अपनी प्रोफेशनल जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ-साथ अकेले तीन नाबालिग बच्चों की देखभाल करना… ऐसे मामलों में, नाबालिग बच्चों के प्रति पिता का दायित्व केवल इसलिए कम नहीं हो जाता क्योंकि पत्नी को यह दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है।”

फैसला

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हाईकोर्ट ने पिछले ITR के आधार पर पति की वास्तविक आय का रूढ़िवादी आकलन 40,000 रुपये प्रति माह किया। अनुरीता वोहरा बनाम संदीप वोहरा मामले के फॉर्मूले को लागू करते हुए, कोर्ट ने निर्धारित किया कि तीन बच्चों के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रति माह की राशि उचित है।

कोर्ट ने तर्क दिया कि बच्चों का कुल मासिक खर्च लगभग 45,000 रुपये होगा। चूंकि पत्नी 34,000 रुपये कमाती है, वह प्राथमिक देखभालकर्ता (Primary Caregiver) के रूप में अपने अमूल्य योगदान के अलावा आर्थिक रूप से (लगभग 20,000 रुपये) भी योगदान देगी।

तदनुसार, कोर्ट ने आदेश दिया कि पति द्वारा तीन नाबालिग बच्चों के लिए देय अंतरिम भरण-पोषण को 30,000 रुपये से घटाकर 25,000 रुपये प्रति माह किया जाता है। याचिका का निपटारा इन निर्देशों के साथ किया गया।

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: हितेश मखीजा बनाम रितु मखीजा
  • केस नंबर: CRL.REV.P. 723/2024
  • कोरम: जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा

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