हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के माननीय न्यायमूर्ति एसएम मोदक ने श्रीमती मंगला एवं अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में एक आदेश पारित किया, जिसमें बीमा कंपनी को 2 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णयों से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि वाहन दुर्घटना के मामले में MACT को पॉलिसीधारक को क्षतिपूर्ति देने का अधिकार है।
संक्षिप्त तथ्य
विजय कंधार, जोकि एक जीप के मालिक थे, उनकी जीप सामने से आ रही एक टाटा सूमो से टक्कर से बचने के लिए एक पेड़ से टकरा गयी। दुर्घटना के कारण, विजय कंधा/ पॉलिसीधारक की मृत्यु हो गयी।
मृतक के परिवार के सदस्य ने दावा याचिका दायर की। उत्तरदाताओं (बीमा कंपनी) ने अपनी देयता से इनकार किया और कहा कि पॉलिसी में केवल तृतीय-पक्ष के दावों को कवर किया है और जैसा कि तत्काल मामले में, पॉलिसीधारक खुद चोटों के कारण मर गया, जिसके लिए बीमा कंपनी का कोई दायित्व नहीं है।
MACT ने बीमा कंपनी के तर्क के साथ सहमति व्यक्त की और कहा कि मालिक / बीमित व्यक्ति को तृतीय पक्ष नहीं कहा जा सकता है और इसलिए कंपनी को देयता से मुक्त कर दिया गया।
MACT के आदेश से क्षुब्ध होकर, दावेदार बॉम्बे हाई कोर्ट चले गए।
उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दे
मुख्य मुद्दे –
क्या बीमा पॉलिसी, पॉलिसी धारक को लगी चोट को कवर करती है?
क्या बीमा कंपनी दावेदारों की प्रतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है?
क्या एमएसीटी तत्काल मामले में मुआवजा दे सकता है?
अपीलकर्ताओं द्वारा निम्न निर्णर्यो पर निर्भर किया गया –
ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रजनी देवी एवं अन्य –
इस मामले में, एमवी अधिनियम की धारा 163-ए के तहत एक दावा दायर किया गया था। मोटरसाइकिल की दुर्घटना हो गई और सवार ने लगी चोटों के कारण दम तोड़ दिया। कोर्ट ने 1 लाख रूपये का भुगतान करने का आदेश किया गया।
राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम आशालता भौमिक एवं अन्य-
बीमा कंपनी को इस मामले में उत्तरदायी ठहराया गया था और उसे मालिक के कानूनी प्रतिनिधियों को क्षतिपूर्ति देने के लिए निर्देशित किया गया था।
रामखिलाड़ी एवं अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य
मोटरसाइकिल दुर्घटना के कारण मोटरसाइकिल के चालक की मृत्यु हो गई। मृतक के परिवार ने बीमा कंपनी के खिलाफ एमवी एक्ट की धारा 163-ए के तहत मामला दर्ज किया। कोर्ट ने दावेदारों को मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये देने का आदेश किया।
बीमा कंपनी द्वारा निम्न निर्णयों पर निर्भर किया गया-
श्रीमती संगीता सुब्रमणि और अन्य बनाम श्री कृष्ण चारी पुट्टाचारी (कर्नाटक उच्च न्यायालय)
इस मामले में, न्यायालय के सामने सवाल यह था कि क्या एक दोपहिया वाहन (जो मालिक नहीं है) का चालक तीसरे पक्ष के रूप में मुआवजे का दावा कर सकता है। कोर्ट कहा कि दावेदार तीसरे पक्ष के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकता है।
चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रमेश बाबू (मद्रास उच्च न्यायालय)
यह मामला बीमा कंपनी की देयता से संबंधित है जो एक पैकेज पॉलिसी के व्यक्तिगत दुर्घटना कवरेज के संबंध में किए गए वादों का पालन करता है। न्यायालय ने बीमा कंपनी के पक्ष में एक आदेश पारित किया और याचिका खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट का विशलेषण
बाम्बे हाई कोर्ट ने कर्नाटक और मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय से असहमति जतायी और कहा कि व्यक्तिगत दुर्घटना के मामलों में भी MACT को मुवाजा तय करने का पूर्ण अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामलमें में अनुबंध की शर्तें स्पष्ट है और मृतक ने व्यक्तिगत दुर्घटना के लिए 100 रू0 प्रमियम दिया है, इसलिए बीमा कंपनी अपीकर्ता को 2,00,000 रुपये मुवाजा देने के लिए बाध्य है।
Case Details:-
Title: Smt. Mangala & Ors vs National Insurance Company Limited
Case No. FIRST APPEAL NO. 378 OF 2020
Date of Order: 29.09.2020
Coram: Hon’ble Justice S. M Modak
Advocates: Shri H.P. Lingayat, Advocate for the Appellants. Shri B.P. Bhatt, Advocate for the Respondent.