वादी पंकज (नाबालिग) द्वारा अपनी मां फूल देवी के माध्यम से माननीय Allahabad High Court के समक्ष एक रिवीजन याचिका दायर की गयी थी।
याची के विरूद्ध धारा 363, 366, 376, 342, 506 आईपीसी और 3/4 पोस्को अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
याची के वकील द्वारा उठाए गए तर्क –
याची के वकील ने कहा कि शत्रुता के कारण उसको मामले में झूठा फंसाया गया है। यह आगे कहा गया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, अपराध के समय याची की आयु 15 वर्ष, सात महीने और 11 दिन थी।
वकील ने तर्क दिया कि मामले में याची को आरोपित किया गया है, जबकि इसी मामले में सह-अभियुक्त को बरी कर दिया गया है। आगे यह तर्क दिया गया कि पीड़ित के शरीर पर कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं थी और साथ ही साथ इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में भी देरी हुई है, जिसका कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं है।
याची की ओर से यह भी बहस हुई कि जिला प्रोबेशनरी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में भी याची के विरूद्ध कोई तथ्य नहीं पाया गया है।
राज्य सरकार का तर्क-
सरकारी वकील ने तर्क दिया कि यदि याची को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह आदतन अपराधियों के सम्पर्क में आ सकता है और इसीलिए उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का विशलेषण
अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने द जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 2015 के उद्देश्य पर ध्यान दिया और कहा कि अधिनियम का मुख्य उद्देश्य किशोरों को कठोर अपराधियों की संगत से बाहर रखना और उन्हें सुरक्षित जगह प्रदान करना है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें किशोर की जमानत याचिका के मूल्यांकन से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 12 के प्रावधानों का सीआरपीसी में उल्लेखित जमानत के प्रावधानों पर अत्यधिक प्रभाव है। धारा 12 मंे जमानत के प्रावधानों के अनुसार एक किशोर को जमानत दे दी जानी चाहिए जब तक कि ऐसा मामला ना हो कि रिहाई पर किशोर को किसी अपराधी के संगत में आने की संभावना है या उक्त किशोर को नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे की संभावना है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि एक किशोर की जमानत याचिका को यांत्रिक रूप से खारिज नहीं किया जा सकता है। धारा 12 के तहत याचिका पर विचार करते समय, किशोर बोर्ड को पारिवारिक पृष्ठभूमि, वित्तीय स्थिति और ज्ञात अपराधियों के साथ पिछले संबंध जैसी चीजों पर विचार करना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय
कोर्ट ने कहा कि याची की उम्र को ध्यान में रखते हुए साथ ही क्योंकि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई तथ्य नहीं है कि किशोर पहले से ज्ञात अपराधियों के साथ जुड़ा हुआ था, याची को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, और उसको उसके प्राकृतिक संरक्षक को सौंप दिया जानी चाहिए।
Case Details:-
Title:- Pankaj vs State Of U.P. And Anr
Case No. CRIMINAL REVISION No. – 3198 of 2019
Date of Order: 05.10.2020
Coram: Hon’ble Justice Suresh Kumar Gupta
Counsel for Revisionist :- Shashi Kant Dwivedi,Om Prakash Singh Counsel for Opposite Party :- G.A.