एक सू-मोटो याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य मुद्दा यह था कि उन वकीलों को जो कोविड-19 महामारी के कारण काम से बाहर हैं, वित्तीय सहायता कैसे प्रदान की जाय।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली बेंच में माननीय मुख्य न्यायधीश एस ए बोबडे, माननीय जस्टिस एएस बोपन्ना और माननीय जस्टिस वी रामसुब्रमणियम ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के सभी बार एसोसिएशनों ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है संघर्षरत वकीलों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किया जाये।
माननीय मुख्य न्यायधीश एस ए बोबडे ने इस तथ्य का अवलोकन किया कि सरकार या अदालत उन वकीलों के बीच अंतर कैसे करेगी, जो महामारी से पहले भी कोई पैसा नहीं कमाते थे और वो वकील जो महामारी के प्रकोप से पहले कुछ जीविका अर्जित करते थे।
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नापड़े से अनुरोध किया कि वे उन वकीलों की पहचान करने में मदद करें, जिन्हें वित्तीय सहायता की वास्तव में आवश्यकता है।
सीजेआई बोबडे ने यह भी कहा कि यदि समर्थ वकील आकस्मिकता निधि का अधिकांश हिस्सा अपनी ओर खींच लेंगे तो वास्तव मंे सहायता के योग्य वकील छूट जायेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को भी नोट किया कि भले ही केंद्र सरकार से आकस्मिक निधि स्थापित करने का अनुरोध किया गया हो, परन्तु साथ ही साथ बार काउंसिल को भी अपने साथी वकीलों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
सुनवाई के दौरान मौजूद वरिष्ठ वकील अजीत कुमार ने कहा कि कुछ राज्य वकीलों की मदद कर रहे हैं लेकिन उनके स्त्रोत भी सूखे चल रहे हैं क्योंकि वे पिछले 8 महीनों से वकीलों का समर्थन कर रहे हैं।
इसी तरह की याचिका में, 22.07.2020 को सर्वाेच्च न्यायालय ने देश के सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया था।
उस मामले में, सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा था कि पूरा देश कठिन समय से गुजर रहा था लेकिन वकीलों के हितों पर भी विचार किया जाना चाहिए क्योंकि वे किसी अन्य माध्यम से आजीविका कमाने के हकदार नहीं हैं।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक याचिका भी अदालत के समक्ष लंबित है, जहां अदालत से उन वकीलों के लिए जो जीविका चलाने में अस्मर्थ है को सरकार से 3 लाख रुपये तक के ऋण प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि देश भर के वकीलों के एक बड़े हिस्से को धन की जरूरत है क्योंकि उनकी आय का एकमात्र स्रोत अदालतें है, जो काफी समय से काम नहीं कर रही हैं। यह भी कहा गया था कि उनमें से अधिकांश के पास कोई वास्तविक आय नहीं है, इसलिए सरकार उनकी मदद के लिए आगे आए।