अपने ससुराल वालों द्वारा दुर्व्यवहार या अत्याचार का समना करने वाली विवाहित महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत संयुक्त परिवार के साझा घर का दावा करने का अधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर को घरेलू हिंसा अधिनियम पर अपने पिछले फैसले को संशोधित किया और कहा कि बेटियों को अपनी ससुराल में रहने का अधिकार है। वास्तव में, भारतीय महिलाएं घरेलू हिंसा की कार्यवाही के दौरान और उसके बाद अपने ससुराल में आवासीय अधिकारों का दावा कर सकती हैं।
इससे पहले, 12 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने एक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में बेटी के अधिकारों के पक्ष में फैसला सुनाया था। जस्टिस अरुण मिश्रा, एस नाज़ेर, और एमआर शाह की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 में निर्दिष्ट प्रावधान के तहल संशोधन से पहले या बाद में जन्मी बेटियों को बेटों के बराबर संपत्ति में अधिकार होगा। त्र
साझा गृहस्थी क्या है?
साझा घर एक महिला के पति या संयुक्त परिवार के स्वामित्व वाली संपत्ति को संदर्भित करता है, जिसमें पति एक सदस्य है। इसमें परिवार के किसी भी सदस्य की स्व-अर्जित संपत्ति शामिल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (एस) में एक महिला जो घरेलू हिंसा से पीड़ित है उसको साझा घर में विधिक अधिकार है और साथ ही उस महिला को सास के पैतृक घर में भी अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2005 के आदेश में कहा था कि पत्नी केवल साझा घर की हकदार तब ही होगी, अगर पीड़ित व्यक्ति वहां रहता है या अतीत में घरेलू संबंध में रहता था।
विशेष रूप से, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 (1) में कहा गया है कि घरेलू संबंध में प्रत्येक महिला को अपने शीर्षक या उस में लाभदायक हित की परवाह किए बिना, साझा घर में निवास करने का कानूनी अधिकार होगा।
Case Details
Title- Satish Chander Ahuja vs Sneha Ahuja
Case No. Civil Appeal 2483 of 2020
Coram- Hon’ble Justice Ashok Bhushan, Hon’ble Justice R.Subhash Reddy and Hon’ble Justice M.R. Shah
Date of Judgment- 15.10.2020