हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है, लेकिन अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है और उसे विभागीय जांच में बरी कर दिया गया है, तो पदोन्नति से इनकार करने का यह आधार मान्य नहीं होगा।
यह फैसला न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने पुलिस विभाग के मानद हेड कांस्टेबल बीर सिंह की याचिका पर सुनाया। बीर सिंह को मानद एएसआई (Assistant Sub-Inspector) के पद पर पदोन्नति से इस आधार पर वंचित कर दिया गया था कि उनके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है।
न्यायालय ने 3 सितंबर को पारित आदेश में पुलिस विभाग को निर्देश दिया कि “याचिकाकर्ता (बीर सिंह) के मामले पर उस तारीख से पदोन्नति हेतु विचार किया जाए, जब उनके कनिष्ठों को पदोन्नति दी गई थी।”

अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी ने तीन बार ‘अनट्रेस्ड रिपोर्ट’ दाखिल की थी, लेकिन मजिस्ट्रेट ने संतुष्ट न होकर आगे जांच के आदेश दिए। इसके बावजूद चार्जशीट दाखिल नहीं की गई।
“निश्चित रूप से मजिस्ट्रेट को आगे की जांच का आदेश देने का अधिकार है, लेकिन इस आधार पर पदोन्नति से इनकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब अब तक आरोप तय भी नहीं हुए हैं,” आदेश में कहा गया।
हाईकोर्ट ने यह भी दोहराया कि “एक बार यदि कर्मचारी विभागीय कार्यवाही में बरी हो जाता है, तो पात्रता के अधीन उसे उच्च पद पर पदोन्नति के लिए विचार करना आवश्यक है।”
बीर सिंह ने अदालत को बताया कि विभागीय जांच में बरी होने के बावजूद उन्हें पदोन्नति से वंचित रखा गया, जबकि इसी एफआईआर में नामित अन्य कर्मचारियों को पदोन्नति और सभी सेवानिवृत्ति लाभ जैसे अवकाश वेतन, पेंशन कम्यूटेशन और डेथ-कम-रिटायरमेंट ग्रेच्युटी दी गई।
जून 2011 में बीर सिंह और सात अन्य पर एनडीपीएस अधिनियम के तहत आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया गया था। जांच एजेंसी अब तक तीन बार ‘अनट्रेस्ड रिपोर्ट’ दाखिल कर चुकी है, मगर आरोप तय नहीं हुए।
इस फैसले के साथ अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना साबित आरोपों के आधार पर किसी कर्मचारी के कैरियर की प्रगति को अनिश्चितकाल तक रोका नहीं जा सकता।