हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में हाल ही में हुए घटनाक्रम में, एक युवक को जिला जज द्वारा मामूली वाहन दुर्घटना के बाद डकैती का आरोप लगाए जाने के बाद जमानत दे दी गई। सीसीटीवी फुटेज के विश्लेषण के बाद हाईकोर्ट का फैसला आया, जिसमें विवाद तो दिखा, लेकिन डकैती का कोई सबूत नहीं मिला।
यह मामला तब शुरू हुआ, जब जिला एवं सत्र न्यायाधीश मोहित रघुवंशी ने कनाड़िया पुलिस थाने में शैलेंद्र नागर के खिलाफ डकैती की शिकायत दर्ज की। नागर को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन निचली अदालत ने शुरू में उसे जमानत देने से इनकार कर दिया।
शिकायत के अनुसार, जज ने आरोप लगाया कि मामूली टक्कर के बाद, टकराव हुआ, जिसे उन्होंने डकैती बताया। हालांकि, जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की अध्यक्षता में हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान, घटनास्थल से सीसीटीवी फुटेज की समीक्षा की गई – जो नागर की किराना दुकान के सामने स्थित थी – जिसमें एक अलग कहानी सामने आई।
बचाव पक्ष के वकील मनीष यादव और करण बैरागी ने फुटेज पेश की, जिसमें जज को मामूली झड़प के बाद नागर की गाड़ी के पास जाते हुए साफ तौर पर दिखाया गया था। पूरी रिकॉर्डिंग में कार की खिड़की से मौखिक बातचीत दिखाई गई, लेकिन डकैती जैसी कोई बात नहीं दिखी।
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अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने कहा, “सीसीटीवी फुटेज में केवल झगड़ा दिखाई देता है और ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि डकैती हुई है। यह देखते हुए कि आरोपी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और घटना उसके स्टोर के ठीक सामने हुई, जमानत देना उचित लगता है।”