तेलंगाना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 11 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा दाखिल उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2025–26 से इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की फीस बढ़ाने के लिए राज्य सरकार को अंतरिम निर्देश देने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति के. लक्ष्मण की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि फीस संशोधन पर अंतिम निर्णय राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र है। साथ ही, अदालत ने तेलंगाना प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति (TAFRC) को निर्देश दिया कि वह संबंधित कॉलेजों से प्राप्त अभ्यावेदनों पर विचार करे, उपयुक्त शुल्क संरचना तय करे और छह सप्ताह के भीतर अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपे।
कॉलेजों ने 28 जून 2025 को जारी राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि 2022–25 की अवधि के दौरान लागू शुल्क संरचना को ही 2025–26 सत्र में भी लागू रखा जाएगा।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि TAFRC का हर तीन वर्ष में शुल्क की समीक्षा करना उसकी वैधानिक जिम्मेदारी है, और इस प्रक्रिया में देरी अनुचित है। न्यायमूर्ति लक्ष्मण ने यह सवाल उठाया कि दिसंबर 2024 में कॉलेजों द्वारा प्रस्ताव जमा किए जाने के बावजूद, मार्च 2025 की समिति की बैठक में चर्चा होने के बाद भी TAFRC अब तक कोई निर्णय क्यों नहीं ले सकी।
कॉलेजों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश देसाई ने तर्क दिया कि प्रस्तावों को पहले ही प्रारंभिक मंजूरी मिल चुकी थी। वहीं राज्य सरकार के वकील राहुल रेड्डी ने विरोध करते हुए कहा कि कई कॉलेजों ने 70% से 90% तक की वृद्धि मांगी है, जो छात्रों और राज्य की फीस प्रतिपूर्ति योजना पर अत्यधिक आर्थिक बोझ डालेगी, जो पहले से ही बकाया भुगतान की समस्या से जूझ रही है।
राज्य सरकार ने फीस वृद्धि के प्रस्तावों को अत्यधिक मानते हुए एक उप-समिति गठित की है, जो इस विषय पर समुचित सिफारिशें तैयार करेगी।
याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने इंजीनियरिंग कॉलेजों की फीस के विनियमन में संतुलित और पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया और TAFRC को बिना किसी और देरी के अपनी नियामक जिम्मेदारी निभाने का निर्देश दिया।