वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया कमेटी की याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की तरफ से दाखिल पुनरीक्षण याचिका को खारिज की। इस मामले में तीन महीने की लंबी बहस और दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। बुधवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी है।
श्रीमती राखी सिंह व 9 अन्य महिलाओं ने श्रृंगार गौरी में पूजा के अधिकार को लेकर वाराणसी की जिला अदालत में सिविल वाद दायर किया। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी ने वाद की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की कि कोर्ट को प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991के उपबंधों के तहत अदालत को वाद सुनने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कमेटी की अर्जी खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
याची का तर्क था कि उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है। क्योंकि पूजा से स्थल की धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ होगी, जो कानूनन नहीं किया जा सकता। इसलिए यहां नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। मर्यादा कानून के आधार पर सिविल वाद को मियाद बाधित करार दिया। कहा गया कि चालाकी से पूजा के अधिकार की मांग में दाखिल सिविल वाद से विपक्षी के अधिकारों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की गई है। जिससे 1991के कानून का उल्लघंन होगा। इसलिए जिला अदालत में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के लिए हिन्दू महिलाओं द्वारा वाद सुनवाई योग्य नहीं है।
याचिवका में यह भी कहा गया कि मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि पूजा 1990 में रोकी गई या 1993 में रोकी गई। अगर इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट से प्रतिबंधित है। सिविल वाद उपासना स्थल अधिनियम से भी प्रतिबंधित है। क्योंकि, 15 अगस्त 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का वही स्टेट्स बरकरार रहना चाहिए। स्थल की धार्मिक स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता। यह विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है। क्योंकि मस्जिद वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है और बोर्ड की सम्पत्ति के विवाद की सुनवाई वक्फ अधिकरण को करने का अधिकार है। सिविल कोर्ट को अधिकार नहीं है।
वहीं हिन्दू पक्ष की तरफ से कहा गया कि पौराणिक साक्ष्यों एवं 15 अगस्त 1947 के पहले से श्रृंगार गौरी, हनुमान व कृति वासेश्वर की पूजा होती आ रही है। इसलिए, 1991 का प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट इस मामले में लागू नहीं होगा। इनका कहना था कि मंदिर में मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने के बाद उस जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित हो जाता है। हिन्दू विधि में मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी अप्रत्यक्ष मूर्ति का अस्तित्व बना रहता है।
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हिन्दू पक्ष ने कहा औरंगजेब ने स्वयं भू विश्वेश्वर नाथ मंदिर तोड़ा और मंदिर की दीवार पर मस्जिद का आकार दिया गया है। इस्लामिक कानून के तहत इसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। विवादित स्थल पर नमाज कबूल नहीं होती। 1937 के दीन मोहम्मद केस का हवाला देते हुए कहा कि इस केस में केवल वादी को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई है। मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है।
उन्होंने कहा कि जहां आज तीन गुंबद है वहीं पर श्रृंगार गौरी, हनुमान व कृतिवास मंदिर था। एक नक्शा भी पेश किया तथा कहा कि किसी इस्लामिक इतिहासकार ने ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र नहीं किया है। यह साफ हो गया है कि आलमगीर मस्जिद विवादित स्थल से तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित है। उस काल में कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई।
अधिवक्ता जैन ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट पहले का है। समवर्ती सूची के कारण प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट पर प्रभावी होगा।इस कानून के तहत ज्ञानवापी परिसर की भूमि विश्वनाथ मंदिर की है। मस्जिद का किसी भूमि पर स्वामित्व नहीं है। मंदिर की संपत्ति या हिंदू मुस्लिम का विवाद वक्फ अधिकरण को सुनने का अधिकार नहीं है।वह मुस्लिमो के बीच विवाद ही सुन सकता है। स्कंद पुराण के आधार पर कहा कि पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में आने वाले मंदिरों का उल्लेख किया गया है। उनमें से कुछ पर मस्जिद बनी हुई है। ज्ञानवापी कूप में स्नान कर श्रृंगार गौरी के पूजन का विधान है। विवादित ढांचे की तस्वीर पेश कर कहा कि साफ दिखाई दे रहा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद का आकार दिया गया है। परिक्रमा मार्ग में 11 मंदिरों का उल्लेख है। सबकी अलग पूजा पद्धति दी गई है। तीन महीने की लंबी बहस के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। बुधवार को याचिका खारिज कर दी है।