इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह सभी कर्मचारियों को समान समझकर फेयर कार्य करेगी। जूनियर को सीनियर कर्मचारी से पहले नियमित करना मनमाना एवं अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मूल अधिकार का उल्लघंन है तथा शक्ति का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने कहा कि विभाग अपनी स्वयं की गलती का लाभ नहीं उठा सकता। कोर्ट ने जिलाधिकारी गोरखपुर को संग्रह चपरासी याची को उससे जूनियरों को नियमित करने की तारीख 30 सितम्बर 1989 से नियमित मानकर 10 फीसदी ब्याज सहित सभी सेवा जनित परिलाभों का तीन माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने रामानंद गुप्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची का कहना था कि उसे 1 जनवरी 79 को सीजनल संग्रह चपरासी नियुक्त किया गया। जबकि विपक्षियों को इसके बाद नियुक्त किया गया। किंतु उन्हें 1989 मे नियमित कर लिया गया और याची को कोर्ट के आदेश पर 26 अक्टूबर 17 को नियमित किया गया। उसने अपने से जूनियर कर्मचारियों को नियमित करने की तिथि से नियमित मानने की अर्जी दी। जिसे तय करने का कोर्ट ने निर्देश दिया तो जिलाधिकारी ने यह कहते हुए मांग अस्वीकार कर दी कि याची के साथ कोई भी उससे जूनियर कर्मचारी नियमित नहीं किया गया। याची को नियमित करते समय उसकी आयु 45 वर्ष की थी।
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सरकार से आयु में छूट लेने के बाद उसे नियमित किया गया और वह 31 अक्टूबर 18 को सेवानिवृत्त हो चुका है। उसकी सेवा दस साल से कम है। इसलिए उसे पेंशन पाने का अधिकार नहीं है। याची अधिवक्ता का तर्क था कि सरकार नियमित करने में कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकती। जूनियर से पहले उसे नियमित किया जाना चाहिए था। इसलिए उससे जूनियर जिस तारीख को नियमित किए गए हैं, उसी तारीख से याची को भी नियमित माना जाय।
कोर्ट ने कहा कि याची को नियमित न कर जूनियर को नियमित करने की अपनी गलती का लाभ सरकार नहीं उठा सकती। कोर्ट ने याची के नियमिती करण आदेश को संशोधित कर जूनियर कर्मचारियों को नियमित करने की तिथि से नियमित मानकर सेवा जनित सभी परिलाभों का याची को हकदार माना है।