मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और मोटर वाहन नियमों के प्रावधानों के तहत ट्रैफिक पुलिस द्वारा जारी किए गए ई-चालान की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) के बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट ने राज्य के प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति सुमन श्याम की खंडपीठ ने सुनवाई की।
वरिष्ठ अधिवक्ता बेनू धर दास द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वर्तमान प्रणाली, जहां पुलिस यातायात उल्लंघन के मामलों में अभियोक्ता और निर्णायक दोनों के रूप में काम करती है, संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र में निहित निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों को कमजोर करती है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह दोहरी भूमिका स्थापित कानूनी सिद्धांत का उल्लंघन करती है कि एक ही मामले में कोई व्यक्ति न्यायाधीश और अभियोजक दोनों नहीं हो सकता है।
इसके अलावा, जनहित याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वाहन मालिकों को ई-चालान मामलों में अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मजबूर किया जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया जिसके बारे में याचिकाकर्ता का दावा है कि यह साबित करने के बोझ को अनुचित तरीके से बदल देती है। इसके अतिरिक्त, जनहित याचिका में असम सरकार द्वारा निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं की आलोचना की गई है, जो चालान लंबित रहने तक आवश्यक वाहन-संबंधी लेन-देन, जैसे अनापत्ति प्रमाण पत्र, फिटनेस प्रमाण पत्र, कर भुगतान और ड्राइविंग लाइसेंस के नवीनीकरण की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करती है।