भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने एक प्रेरणादायक संबोधन में छात्रों से कहा कि परीक्षा के रैंक सफलता का एकमात्र पैमाना नहीं हैं। वी.एम. सालगांवकर कॉलेज ऑफ लॉ के स्वर्ण जयंती समारोह में बोलते हुए, उन्होंने अपने छात्र जीवन का एक दिलचस्प किस्सा साझा किया और बताया कि कैसे वे लॉ के अंतिम वर्ष में शायद ही कभी कॉलेज गए, फिर भी मेरिट लिस्ट में तीसरा स्थान हासिल किया।
मुख्य न्यायाधीश ने अपनी बात को साबित करने के लिए एक व्यक्तिगत अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि उनके एक दोस्त, जो बाद में हाईकोर्ट के जज बने, उनकी उपस्थिति (attendance) लगा दिया करते थे। CJI गवई ने कहा, “अमरावती में, मुझे लगता है कि मैं शायद आधा दर्जन बार ही कॉलेज गया होऊंगा।” उन्होंने बताया कि वे तैयारी के लिए गाइडबुक्स और पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों पर निर्भर रहते थे।
इतनी कम उपस्थिति के बावजूद, उन्होंने विश्वविद्यालय की मेरिट सूची में तीसरा स्थान प्राप्त किया। यह बताने के लिए कि अकादमिक रैंकिंग भविष्य का निर्धारण नहीं करती, उन्होंने अपने साथियों के करियर का उदाहरण दिया। परीक्षा में टॉप करने वाला छात्र एक क्रिमिनल वकील बना, जबकि दूसरे स्थान पर रहा छात्र हाईकोर्ट का जज बना। CJI गवई ने कहा, “मैं तीसरे नंबर पर था… और आज मैं भारत का मुख्य न्यायाधीश हूं।”

उन्होंने भावी वकीलों को स्पष्ट संदेश दिया: “आपकी परीक्षा की रैंक क्या है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। परीक्षा परिणाम यह तय नहीं करते कि आप जीवन में कितनी सफलता प्राप्त करेंगे। आपका दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत, समर्पण और पेशे के प्रति प्रतिबद्धता ही मायने रखती है।”
CJI की यह टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस महेश एस. सोनक के हल्के-फुल्के अंदाज में दिए गए बयान के बाद आई, जिन्होंने खुद को कॉलेज का एक “‘आउट-स्टैंडिंग’ छात्र” बताया था क्योंकि पास में ही मिरामार बीच था और वे अक्सर क्लास के बाहर ही पाए जाते थे।
व्यक्तिगत किस्सों के अलावा, CJI गवई ने कानूनी शिक्षा की एक प्रणालीगत चुनौती पर भी बात की। उन्होंने केवल राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (NLUs) पर ध्यान केंद्रित करने के खिलाफ आगाह किया और पूरे देश में कानूनी शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।