जांच के दौरान आईओ (IO) के सवालों का जवाब देने के लिए आरोपी धारा 91 सीआरपीसी के तहत दस्तावेज मांग नहीं सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 91 का इस्तेमाल कोई आरोपी जांच के दौरान जांच एजेंसी को दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए मजबूर करने हेतु नहीं कर सकता, ताकि वह पूछताछ में आसानी से उत्तर दे सके।

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने एडुकॉम्प इंफ्रास्ट्रक्चर एंड स्कूल मैनेजमेंट लिमिटेड (EISML) के पूर्व निदेशक शांतनु प्रकाश की याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा कि हालांकि धारा 91 अदालत को जांच के लिए “आवश्यक या वांछनीय” दस्तावेज तलब करने की शक्ति देती है, लेकिन आरोपी इसका उपयोग केवल अपनी सुविधा के लिए नहीं कर सकता। न्यायालय ने कहा कि आरोपी यह तय नहीं कर सकता कि जांच किस प्रकार की जानी चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता शांतनु प्रकाश 2006 से 2018 तक EISML के बोर्ड में निदेशक थे। कंपनी ने 2009 और 2013 के बीच बैंकों के एक संघ से ऋण और वित्तीय सहायता प्राप्त की थी। वित्तीय संकट के कारण, कंपनी को 25 अप्रैल, 2018 को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT), चंडीगढ़ द्वारा कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) में स्वीकार कर लिया गया। इसके परिणामस्वरूप, निदेशक मंडल को निलंबित कर दिया गया और सभी रिकॉर्ड तथा बही-खाते रेजोल्यूशन प्रोफेशनल के कब्जे में चले गए।

29 जून, 2021 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर सीबीआई ने EISML और शांतनु प्रकाश के खिलाफ लगभग 806.07 करोड़ रुपये के ऋण फंड के डायवर्जन का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की। जांच के दौरान, सीबीआई ने सितंबर 2023 में याचिकाकर्ता को समन जारी कर वर्ष 2007-2010 के लेनदेन के बारे में जवाब मांगे।

READ ALSO  No Sufficient Evidence of Concealment or Absconding: Delhi High Court Quashes Proclaimed Offender Status

याचिकाकर्ता का कहना था कि 13-15 साल पुराने लेनदेन के बारे में बिना रिकॉर्ड देखे जवाब देना असंभव है, जो अब नई प्रबंधन/रेजोल्यूशन प्रोफेशनल के पास हैं। जब बैंकों और नए प्रबंधन ने दस्तावेज देने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने धारा 91 सीआरपीसी के तहत विशेष न्यायाधीश के समक्ष आवेदन दायर किया, जिसे 20 दिसंबर, 2023 को समय से पहले (premature) बताते हुए खारिज कर दिया गया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) की धारा 17 के तहत सभी संपत्ति और रिकॉर्ड की कस्टडी रेजोल्यूशन प्रोफेशनल के पास चली गई थी। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड तक पहुंच के बिना सवालों का जवाब देना एक “असंभवता” है और निष्पक्ष जांच संविधान के अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा है।

वहीं, सीबीआई और प्रतिवादी बैंकों ने याचिका का विरोध किया। उनका तर्क था कि जांच अभी चल रही है और आरोपी को दस्तावेज उपलब्ध कराने का चरण पुलिस रिपोर्ट (चार्जशीट) दाखिल होने के बाद धारा 207 सीआरपीसी के अनुपालन में आता है। सीबीआई ने कहा कि पूछताछ के दौरान याचिकाकर्ता को संबंधित दस्तावेज दिखाए गए थे और उन्हें पढ़ने का अवसर दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि कानून आरोपी को जांच के चरण में “फिशिंग इंक्वायरी” (roving or fishing inquiry) करने की अनुमति नहीं देता।

READ ALSO  ईडी ने दिल्ली वक्फ मामले में आप विधायक अमानतुल्ला खान को रिहा करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने धारा 91 सीआरपीसी के दायरे का विश्लेषण करते हुए कहा कि जांच के चरण में दस्तावेज तलब करने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब न्यायालय इसे जांच के उद्देश्य के लिए “आवश्यक या वांछनीय” मानता हो।

न्यायालय ने नोट किया कि जांच अधिकारी (IO) के पास पहले से ही दस्तावेज मौजूद हैं और वह पूछताछ के दौरान याचिकाकर्ता का उनसे सामना करा रहे हैं। पीठ ने टिप्पणी की:

“पूछताछ का उद्देश्य आरोपी के व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर सच्चाई को सामने लाना है। यदि समय बीतने या रिकॉर्ड की कमी के कारण याचिकाकर्ता को विवरण याद नहीं है, तो वह जांच अधिकारी को यह बता सकता है। कानून किसी आरोपी को उन सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं करता जिनका उत्तर देना उसके लिए तथ्यात्मक रूप से असंभव है; यह केवल उसे जांच में सहयोग करने की अपेक्षा करता है।”

हाईकोर्ट ने पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जांच पुलिस/जांच एजेंसी का विशेष विशेषाधिकार है। आरोपी जांच का मार्गदर्शन नहीं कर सकता और न ही यह मांग कर सकता है कि उसे जवाब देने की सुविधा के लिए विशिष्ट दस्तावेज एकत्र करके दिए जाएं।

READ ALSO  आपराधिक मुक़दमा छुपाना कर्मचारी की सेवा समाप्ति के लिए पर्याप्त आधार हैः सुप्रीम कोर्ट

निर्णय

हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई और याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, दस्तावेजों की अधिकता और उनके पुराने होने को देखते हुए, न्यायालय ने प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्देश भी दिया:

“हालांकि, यह जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि जहां याचिकाकर्ता का सामना भारी या पुराने दस्तावेजों से कराया जा रहा है, वहां आईओ (I.O.) याचिकाकर्ता को दस्तावेजों को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय देगा ताकि वह पूर्ण और सूचित उत्तर दे सके… याचिकाकर्ता विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर देने में अपनी असमर्थता के बारे में जांच अधिकारी को सूचित कर सकता है और दस्तावेजों को देखने के लिए समय मांग सकता है।”

इस प्रकार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यद्यपि आरोपी दस्तावेजों की मांग का अधिकार नहीं रखता, लेकिन उसे निष्पक्ष अवसर दिया जाना चाहिए।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: शांतनु प्रकाश बनाम सीबीआई व अन्य
  • केस नंबर: CRL.M.C. 579/2024 और CRL.M.A. 2371/2024
  • कोरम: न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा
  • याचिकाकर्ता के वकील: अर्शदीप सिंह खुराना, नीना नागपाल, मलका भट्ट, विश्वेंद्र तोमर, तान्वी शर्मा, रश्वेंद्र तोमर और निष्ठा जुनेजा।
  • प्रतिवादियों के वकील: अनुपम एस. शर्मा (सीबीआई के लिए एसपीपी), ओ.पी. गग्गर (यूनियन बैंक), संजय कपूर (एसबीआई), और अन्य।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles