दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को अलगाववादी नेता यासीन मलिक को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का समय दिया है, जिसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 2017 के आतंकी फंडिंग मामले में उनकी उम्रकैद की सज़ा को बढ़ाकर मौत की सज़ा देने की मांग की है।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने आदेश दिया कि तिहाड़ जेल में बंद मलिक को 10 नवंबर को अगली सुनवाई के दौरान वर्चुअल माध्यम से पेश किया जाए। अदालत ने नोट किया कि 9 अगस्त 2024 के आदेश के बावजूद न तो मलिक वर्चुअली पेश हुए और न ही उन्होंने अपना जवाब दाखिल किया।
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को मई 2022 में निचली अदालत ने गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। उन्होंने आतंकवाद और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश से जुड़े सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया था।

एनआईए ने अपनी अपील में कहा कि मलिक के अपराध इतने गंभीर हैं कि अधिकतम दंड यानी मौत की सज़ा दी जानी चाहिए। एजेंसी ने तर्क दिया कि केवल दोष स्वीकार करने के आधार पर आतंकियों को मौत की सज़ा से बचने देना सज़ा नीति को कमजोर करेगा और उन्हें मुकदमे से बचने का रास्ता देगा।
निचली अदालत ने मौत की सज़ा देने से इंकार करते हुए कहा था कि मलिक के अपराध “भारत की अवधारणा के मूल पर प्रहार” करते हैं और जम्मू-कश्मीर को हिंसक तरीके से भारत से अलग करने के उद्देश्य से किए गए थे, लेकिन उम्रकैद को पर्याप्त माना।
मलिक पहले ही अपने पक्ष में वकील नियुक्त करने से इनकार कर चुके हैं और स्वयं बहस करने की इच्छा जताई है। सुरक्षा कारणों से उन्हें “अत्यंत उच्च जोखिम वाले कैदी” के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसके चलते हाईकोर्ट ने उनके वर्चुअल पेशी का आदेश दिया था।
अब यह मामला 10 नवंबर को फिर सुना जाएगा, जब मलिक से एनआईए की मौत की सज़ा की मांग पर उनका पक्ष सुना जाएगा।