दिल्ली हाई कोर्ट ने इटली दूतावास के भारतीय मूल कर्मचारियों द्वारा दायर उस मुकदमे को फिर से बहाल कर दिया है, जिसमें उन्होंने वेतन और भत्तों में भेदभाव का आरोप लगाया था। अदालत ने 2019 में आए उस आदेश को रद्द किया है, जिसमें एकल-न्यायाधीश ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उसमें कोई कारण-कार्रवाई (cause of action) नहीं बनता।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की खंडपीठ उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय मूल कर्मचारियों ने बताया कि दूतावास में स्थानीय स्तर पर नियुक्त उनके इटालियन मूल साथियों की तुलना में उन्हें काफी कम वेतन मिलता है। उनका कहना था कि यह अंतर वर्ष 2000 के एक इटालियन प्रेसिडेंशियल डिक्री का उल्लंघन है।
कर्मचारियों का तर्क था कि एकल-न्यायाधीश ने कानून की गलत व्याख्या की और उन्हें अपना पक्ष सिद्ध करने का अवसर ही नहीं दिया।
3 दिसंबर को पारित आदेश में खंडपीठ ने कहा कि एकल-न्यायाधीश ने यह मानने में त्रुटि की कि कोई कारण-कार्रवाई बनती ही नहीं है। अदालत ने कहा कि भारतीय मूल कर्मचारियों और उनके इटालियन मूल समकक्षों दोनों की स्थानीय भर्ती और कम से कम दो वर्ष भारत में निवास का तथ्य उन्हें एक समान वर्ग के रूप में देखने का “युक्तियुक्त आधार” प्रस्तुत करता है।
अदालत ने यह भी माना कि यह सवाल कि क्या दोनों समूह समान कार्य-श्रेणी में आते हैं और समान वेतन के हकदार हैं, जटिल मुद्दा है और इसमें कानून की व्याख्या के साथ-साथ निवास, कार्य-श्रेणी व जीवन-यापन की लागत जैसे कई तथ्यात्मक पहलू शामिल हैं। ऐसे प्रश्नों का निपटारा सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत संक्षिप्त रूप से नहीं किया जा सकता।
खण्डपीठ ने कहा कि पूर्ण साक्ष्यों के आधार पर मुकदमे की सुनवाई होनी चाहिए और कर्मचारियों को अपने दावे साबित करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वह अभी इस मामले के मेरिट या सीमापूर्ति (limitation), अधिकार-क्षेत्र (jurisdiction) जैसे किसी भी संभावित बचाव पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है। यह सभी पहलू ट्रायल के दौरान ही परखे जाएंगे।
अपील को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने याचिका को बहाल कर दिया और निर्देश दिया कि मामला अब अपने गुण-दोष के आधार पर ट्रायल के लिए आगे बढ़ेगा।

