दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात का दिया आदेश, अस्पताल की लापरवाही पर जताई नाराज़गी, भविष्य के लिए जारी किए दिशा निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात (Medical Termination of Pregnancy – MTP) की अनुमति देते हुए एम्स (AIIMS) को निर्देश दिया है कि 30 मई 2025 को आवश्यक चिकित्सकीय सतर्कता के साथ यह प्रक्रिया पूरी की जाए। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने विस्तृत फैसले में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही, चिकित्सा रिपोर्टों में विरोधाभास और संवेदनशील मामलों में प्रक्रियागत भ्रम पर कड़ी टिप्पणी की है।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

11 मई 2025 को फतेहपुर बेरी थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, आरोपी द्वारा नाबालिग के साथ कई बार बलात्कार किया गया था और शादी का झांसा दिया गया। पीड़िता ने यह भी बताया कि आरोपी ने उसके शरीर पर लाइटर से जलाया था। उसी दिन एम्स में मेडिकल परीक्षण में उसकी गर्भावस्था की पुष्टि हुई, लेकिन अस्पताल ने आईडी कार्ड न होने के आधार पर अल्ट्रासाउंड करने से मना कर दिया, जबकि पीड़िता पुलिस अधिकारी के साथ पहुंची थी।

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बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा 13 मई को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि गर्भपात में विलंब न हो, लेकिन इसके बावजूद अस्पताल ने पहचान पत्र के बिना परीक्षण करने से इनकार कर दिया।

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अदालत की कार्यवाही और टिप्पणियाँ

27 मई को जब मामला हाईकोर्ट में आया, तब अदालत ने एम्स को तत्काल मेडिकल बोर्ड गठित कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। एम्स द्वारा 24 मई को किए गए अल्ट्रासाउंड में गर्भावस्था 25 सप्ताह और 4 दिन बताई गई थी, जबकि 28 मई को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में इसे घटाकर 23 सप्ताह और 4 दिन बताया गया। कोर्ट ने इस विरोधाभास को गंभीरता से लिया और स्पष्टीकरण मांगा।

29 मई को एम्स की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि पीड़िता शारीरिक व मानसिक रूप से गर्भपात के लिए सक्षम है और इस प्रक्रिया से उसकी जान को कोई खतरा नहीं है। कोर्ट ने इसके आधार पर MTP का आदेश पारित किया।

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मुख्य निर्देश

  1. गर्भपात की अनुमति: एम्स को 30 मई को सभी जरूरी चिकित्सकीय सावधानियों के साथ गर्भपात कराने का आदेश।
  2. पहचान पत्र की आवश्यकता नहीं: यदि पीड़िता को जांच अधिकारी लाता है, तो अस्पताल को पहचान पत्र की मांग नहीं करनी चाहिए।
  3. तत्काल अल्ट्रासाउंड अनिवार्य: ऐसी स्थिति में अल्ट्रासाउंड में देरी न हो।
  4. स्पष्ट चिकित्सा रिपोर्ट: मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में गर्भकाल, शारीरिक/मानसिक स्थिति और जोखिम स्पष्ट रूप से दर्ज हो।
  5. फॉरेंसिक साक्ष्य संरक्षित हों: भ्रूण के ऊतक डीएनए जांच हेतु सुरक्षित रखे जाएं।
  6. स्थायी मेडिकल बोर्ड: 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था की स्थिति में अस्पताल को कोर्ट आदेश की प्रतीक्षा किए बिना मेडिकल बोर्ड गठित कर लेना चाहिए।
  7. संवेदनशील प्रशिक्षण और एसओपी: अस्पतालों को स्पष्ट दिशानिर्देश और प्रशिक्षण देने के निर्देश।
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न्यायिक टिप्पणी

अदालत ने कहा:

“इस तरह की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि अस्पतालों द्वारा प्रक्रियाओं का कठोर पालन पीड़िता की मानसिक व शारीरिक पीड़ा को और बढ़ा देता है।”

“जब अदालत के समक्ष कोई चिकित्सकीय रिपोर्ट आती है, तो यह माना जाता है कि वह सही है। इसलिए चिकित्सकों पर यह कर्तव्य है कि वे ऐसी रिपोर्टों को पूरी सावधानी से तैयार करें।”

मामले का शीर्षक: माइनर एस (मां के माध्यम से) बनाम राज्य व अन्य
मामला संख्या: W.P. (CRL.) 1804/2025

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